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महाकवि पुष्पदन्त विरचित
तिरिक्ख सख सुरा वि असंख पण सिवि राई रईसुहकख । समासिवि धम्मु पेसियदुक्खु
छमाविण पुरवई लक्खु ।
-४३. १४. ८ ]
पत्ता - संमेयडु सिरि समारुहिचि मासमेत्तु थिङ जोएं ॥ ty अंतिम शाणु पराश्य सहुं मुनिवरसंघापं ॥ १३ ॥
मामि फग्गुणपक्खि सुकिविह सासरू विदेहविमुक्कु or कर्णे ण पोच ण लोहिए सुक्कु पुंण संतुण भण्णइ इस्थि ओ परमेसरु अट्टगुणदु सिहिद सिरोमणिमुक् क सिद्दीहिं
सिवि सिद्धणिसी हियथति ओ परिहारि समीरबहेण
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वित्त उत्थितिथिही अवरहि । जगग्गधैरितिं जाइवि थक्कु ।
लाह तासु चत्थि गुरुक्कु । फुरंतस केवल बोई गभत्थि । सरी सक्ख तक्खणि दड्छु । समच्चणवंदणहोम बिहीहि । पर िणिओइड कुंजरू झत्ति सुरण व अण्णविभाणुमण ।
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असंख्य थे । रातको रतिके सुखको आंकाक्षाका त्याग करनेवाले, धर्मका आश्रय लेनेवाले और दुःखका ध्वंस करनेवाले उनका छह माह कम एक लाख पूर्व समय बीत गया ।
घता - सम्मेद शिखरपर चढ़कर वह एक माह तक योगमें स्थित रहे । मुनिवरसमूहके साथ वह अन्तिम शुक्ल ध्यानपर पहुँचे ||१३||
माघ माह बीतने पर फागुनके कृष्णपक्ष चतुर्थीके दिन अपराह्न के समय चित्रा नक्षत्र में ज्ञानस्वरूप, तीन प्रकारको देहोंसे विमुक्त वह जाकर विश्वके अग्रभाग में स्थित हो गये। जहाँ वह न कृष्ण थे और न पीत । न लाल और न शुक्ल । न उनमें लाघव या और न गुरुता । न वह पुल्लिंग थे और न नपुंसक और न स्त्री कहे जाते थे। वह अपने प्रकाशमान केवलज्ञानमें स्थित थे। वह आठ गुणोंसे समृद्ध परमेश्वर हो गये । लक्षण सहित उनका शरीर समन, वन्दन और होमकी विधियोंसे युक्त अग्निकुमार देवोंके मुकुटमणिकी ज्वालाओंसे तत्काल दग्ध हो गया। सिद्धरूपो नृसिहों में स्थिति पानेवाले उनको नमस्कार कर इन्द्रने अपने पैरसे ऐरावतको प्रेरित किया, और चला गया। दूसरे देव भी सूर्य चन्द्रमा के समान तेजवाले विमानोंपर बैठकर चले गये ।
३. A सुसंख 1 ४. A रायरईसुह Pारिरईसुद्ध | ५. A पहंसि । ६. A सिए ।
१४. १. महामि । २. A सुचित । ३ AP जगमगधरितिहि । ४ A किवह ५. A ण पुंसत संकुण 1 ६. A बोधगमत्थि । ७. समविधि ।