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महापुराण
घाम तूस भरभव्वणमिस पसप्प हियाइ ॥ तिजगिदडु केरल एम जसु पुप्फयंतु को पावइ ||१४||
इस महापुराणे तिसट्टिमा पुरिस गुणाकारे महाकपुप्फयंतविरहषु महाभव मरहाणुमणिए महाकवे परममिवाणगमणं णाम तियाशीसमो परिछेत्र समसो ॥४३॥
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美 "परमप्पहचरिचं समर्त्त ॥
[ ४३. १४.९
पत्ता - भरत भव्य के द्वारा प्रणम्य, आपत्तियोंका नाश करनेवाले पद्मप्रभु मुझपर प्रसन्न
हों, सूर्य-चन्द्र के समान त्रिजगेन्द्रका यश इस प्रकार कौन पा सकता है ? ||१४||
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषोंके गुणाकारोंसे युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महासभ्य भरत द्वारा अनुमत महाकाष्य में पद्मप्रस निर्माण-गमन नामक तैयाकीसच परिच्छेद समाप्त हुआ ॥१३॥
८. AP भमरई । ९. 4 | परमप्पहु । १०. A Pomit the line,