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महापुराण
[४३. १२.५चउदिसु दीसह सम्मुहुँ देउ पउद्दिसु आसणु सीहसमेत्र । चउद्दिसु भावलउभ७ तेउ चउदिसु पासवरत्तु असोज । चउदिसु छत्तई पंडुरयाई
चउदिसु सभई चामरयाई। चउदिसु अहमहाधयपंति चउदिस पुप्फचयाई पडंति । चउदिसु दुंदुहिसह घडति चउद्दिसु इंदयावे गडंति । असेसह भासविसेसई खाणि चदिसु तस्स दियभइ वाणि । पत्ता-चाई सस वह धम्मविहि णव पयत्थ छहर्दवई ।।
आहासइ परमप्पा जणहु सवई भूयई भव्वई ॥१२॥
१३ खएक्कु पुणेक्कु गणेसवराह दुसुण्ण तिण्णि दु पुत्वधराह । तिबिंदुय रंध रिऊयदुयजुत जिणिंदाहु एत्तिय सिक्खपउत्त। सहास दमेष य ओहिजुयाह दुवालस ते चिय सम्ववियाई । सहासई सोलह अट्ठसयाई विवरिद्धिरिसिदहं ताई। महामणपज्जयणाणधराई
धुर्व तिसयंकित सउ जि सयाई । सहासह उपरि धसमाई खजुम्मु सडंकु वि वाइवराई । सहासई वीस पयोणिहि लक्ख वियाणहि संजमधारिणिसंख ।
वयस्थघरस्थ तासु तिलक्ख अणुव्वयणारिहिं पंच जि लक्ख | लतागृह थे, चारों ओर स्तम्भ तथा दिव्य घर थे। चारों दिशाओंके सामने देव थे, चारों तरफ सिंहासन थे। चारों ओर भामण्डलोंसे उत्पन्न तेज था, चारों ओर पल्लवोंसे आरक्त अशोक वृक्ष थे। चारों ओर सफेद छत्र थे, चारों ओर दोनों हाथोंमें चामर थे। चारों ओर आठ ध्वजपंक्तियां थीं। चारों दिशाओं में पुष्प-समूहको वर्षा हो रही थी। चारों दिशाओं में दुन्दभि शब्दकी रचना हो रही थी। चारों ओर इन्द्राणियो नृत्य कर रही थीं। समस्त भाषाओंकी खदान उनको वाणी चारों दिशाओं में फैल रही थी।
पत्ता-सात तत्त्व, इस प्रकारका धर्म, नो पदार्थों और छह द्रव्योंका कथन वह सबके लिए करते हैं । यस अवसरपर सभी लोक भव्य हो गये ॥१२॥
र
एक सौ दस उनके गणधर थे। दो हजार तीन सौ पूर्वधारी थे। जिनेन्द्र के दो लाख उनहत्तर हजार शिक्षक कहे गये हैं। दस हजार अवधिज्ञानी, बारह हजार केवलज्ञानी, विक्रियऋद्धिके पारक मुनोन्द्र सोलह हजार आठ सौ; मनःपर्ययज्ञानी दस हजार तीन सो, नो हजार छह सौ श्रेष्ठवादी थे। चार लाख बीस हजार संयम धारण करनेवाली आयिकाएं हैं। व्रतो गृहस्थ तोन लाख थे। अणुव्रत धारण करनेवालो श्राविकाएं पांच लाख थीं। संख्यात तिथंच थे और देव
४, P जक्खकरे। ५. A P इंदतिमाउ । ६. A तासु 1 .A धम्मविह। ८. P छदमाई।
९.A सवभूइभ्याई भवह । १३. १. A सिक्खय उत्त । २. A P अणुव्वयारिहिं ।