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________________ महाकवि पुष्पदन्त विरचित हुओ परमेसु सुहाई जर्णतु असंखसहासु महामहवंतु। पुणाइब जीय जिणिंद भणंतु णहं तुरहिं गएहिं पिहंतु । पुरं पणवेवि णिवासि विसेवि सुहीहिययंतरि भनि करेवि । जिर्णम्महि हस्थि परो सिसु देवि जगतयणाहु णवेषि लएदि । पवजियढेकु कमक्कमिया पिओइड वारणु चलिउ सकु। गओ गहमंडलु लंधिवि तांव सिला इगसिंचणमेइणि जाय । धत्ता-तहि मेरुसिंगि संणिहिउ जिगु पाणिव सुरयणु आणा ।। कल्हारपिहियघटसहसकर सई पुलोमिपिउ पहाणइ ॥६॥ विगाणिवि पाणिनि पहामिहीन गुणो दयारु करेवि महीइ । पर्णञ्चिवि अम्गइ बालुं चलेहिं थुणेवि सुरेहि गुणालकुलेहिं । समप्पिर मायहि पंकयणेत सुलक्खणजेणरंजियगत्तु । गयामयभोई सवासपएसु पवडिउ तायहरम्मि जिणेसु । ण वण्णहु सक्कंचि तासु कयाई सयद्ध णिउत्तई दोणि सयाई । सरामणयाई सरीरपमाणु रुईइ विरेहाइ णं णवभाणु । समं परउिभयाण रमेवि इसीसमपुन्च ह लक्ख गमे वि। वर्यकसमकिउ सुण्णचउक्क पूर्ण पि दिणेहि पमाणु पढुक्क । तेरसके दिन त्वष्ट्रायोगमें परमेश्वर सुखोंको उत्पन्न करते हुए उत्पन्न हए। असंख्य देव और पांच कल्याणकार्यको करनेवाला इन्द्र फिर आया, 'हे जिनेन्द्र जीवित रहो' यह कहते हुए और गजों तथा अश्वोसे आकाशको आच्छादित करते हुए, फिर प्रणाम कर और घरमें स्थापित कर, बन्धुजनोंके हृदयके भीतर भक्ति कर जिनमाताके हाथमें दूसरा शिशु देकर, त्रिलोकनायको प्रणाम कर और लेकर, जिसपर ढक्का बज रहा है, और जो सूर्यका अतिक्रमण करनेवाला है, ऐसे गजको उसने प्रेरित किया, और इन्द्र चला । ग्रहमण्डलका उल्लंघन करता हुआ वह वहां पहुंचा जहाँ जिन भगवान्को अभिषेकभूमि पाण्डुशिला थी। ___ पत्ता-उस सुमेरु पर्वतपर जिन भगवान्को स्थापित कर दिया गया। सुरसमूह जल लाता है, कमलों से आच्छादित घड़े जिसके हजार हाथोंमें हैं ऐसा इन्द्र उनका अभिषेक करता है ||६|| जानकर और स्नानविधिसे स्नान कराकर पुनः धरतीपर अवतरण कर, बालकके धागे नृत्य और स्तुति कर गुणालकुलके देवोंने लक्षणों और सूक्ष्मध्यंजनोंसे शोभित-शरीर कमलनयन बालक माताके लिए सौंप दिया। देव अपने-अपने घर चले गये। जिनेश अपने पिताके घर में बढ़ने लगे। उनकी लीलाओंका मैं वर्णन नहीं कर सकता। उनके शरीरका प्रमाण ढाई सौ धनुष ऊंचा था। कान्तिमें वह ऐसे शोभित थे मानो नवसूर्य हों। इस प्रकार मानव बालकोंके साथ रमण करते हुए, उनके सात लाख पचास हजार पूर्व समय बीत गया। इतने दिनोंका मान (प्रमाण) पूरा ७. AT सुहासु । ८. A PT जिणंबहि । ९. A तुक ।१०,A कमकमियंकू । ७. १. A P read a as b and basa. २. A Pारलेहि । ३. A Pगुणाण । ४. A P°विजण । ५. Aण वष्णहं सबकमि Pण चवि सक्कमि । ६, A P सरीरु १माणु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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