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सुहासु 'पेरिडिट इ यिकिछ अच्छरणाविमाणु छि बोमदिलाणणभासि 'पेषित् पत्ति धिरण व सित्तू यि
विचिरचिययेहु
पत्ता- विद्यहु देवि तुर होस वगुरु
महापुराण
पुरंदरणारं द्विरी प पसाहित्र सोहि सीमहि गच्भु हिमागमि संगमि माहि पवणि असेहि छट्टिहि रत्ति विरामि इहाविधरो वलिरेडि यंग णराम मंदिक आय दह जि पक्ख सिणा दुहहार गए सुमईसि मद्धिमेहि समाइ कत्ति कंदकियोइ
यि बिरु सीणिबिट्टु | अहीसे मंदिर मेरुमाणु । पाइ अणूण मणीण य रासि । महंतु जलंतु ईग्गि मिलंतु । पहाड़ गंपि णराद्दिवगेहु ।
वज्जरिएं जं जिह दंसणु दिजं ॥ परम जिणु तेण ताहि फलु सिद्ध ||५||
[ ४३.५.१५
दिहि केति पराइय छ । रिदुति वुट्टड हेमबरं । हे दिव्यमि पसर्पिण । संकदिवायरसंग सैकामि । थिओ मुणिनाहु समाय रिदेहि । रिहच्छिण उपऋषि सुकियमाय । घरंगण पाहिय कब्बुरधार । असीदहको डिसास मेहिं । अदितेरसि तद्वैयजोड़ ।
भीषण मत्स्योंसे रौद्र है ऐसे जलसे भयंकर समुद्र देखा । सुखावह सुन्दर अच्छी तरह स्थापित सिहासन देखा । देवोंका विमान देखा, और मेरुके समान नागराजका लोक देखा | आकाश और दिशाओं में चमकती हुई प्रभासे अत्युत्तम मणियों की राशि देखो। पवित्र प्रदीप्त घोसे सिंचित महान आकाशसे मिलती हुई अग्नि देखो, प्रभात में मनुष्यों के द्वारा पूजित राजाके घर जाकर
पत्ता- — देवोने अपने पतिसे जिस प्रकार स्वप्नदर्शन किया था वैसा कहा। उसने उसे फल बताते हुए कहा कि उसका पुत्र परम जिन होगा ॥५॥
इन्द्रकी नारियाँ धवल आंखोंवाली ही श्री धृति- कान्ति और लक्ष्मी आयों और स्वामी के गर्भका प्रसाधन तथा शोधन किया। छह माह तक स्वर्णवर्षा हुई। फिर हिमागमवाले माघ माह्के कृष्णपक्ष षष्ठी के दिन जब कि दिशाचक निर्मल था, रात्रिके अन्तमें चन्द्र और सूर्यके सकाम योग में गजरूप में त्रिबलिसे शोभित अपनी माताकी हमें भगवान् स्थित हो गये । नाग, मनुष्य और देव उनके घर आये। और इन्द्रके साथ उत्सवमें उन्होंने मायाको खण्डित कर दिया । कुबेरने अठारह पक्षों तक लगातार गृहप्रांगण में दुःखको दूर करनेवाली स्वर्णवृष्टि को 1 सुमतिनाथके बाद महाऋद्धियोंसे परिपूर्ण नब्बे हजार करोड़ सागर बोस जानेपर कार्तिक माह के कृष्णपक्षको
१३. पट्टि । १४. AP अहो सरह गिरिसमा १५ पलित पवितु थिएन; P पनि पलितु थिए । १६ किंतु ।
६. A गारिहिं को बच्छ । २. A उति । ३ AP संगमिकामि । ४. सुंकिय ५. मह मसि । ६. यि ।