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-४१.५.१४]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
पत्ता - अण्णा वासरि रायाणियर णिसिविरामि उबलक्खिय || पासायलमवलसुतियइ सिविणयमाल णिरिक्खिय ||४||
दाहिमसायवलु तम ओलको करिंदु खरे खुरेहिं धरग्गु दलंतु fatafat विसाण धुणंसु गिरिंदा कुरंत विणिसु लयादरलोलललाषियजीहु णिसावइसेय दिसागयकंति सूरं गुत्थु पिहिततमीतमुणिम्मलु चंदु फेमस रमंत देईति वरंत मल कुंभल अलीरेषफुल्लिय पोमरयालु मिकीली गईदु पदसिय भीरमीण
सिपण
दु
५
रात्रि झलझलकण्णु ! यिजिंगमु णाई धरिंदु | बलाल बिंद बलेण खलंतु । यिच्छिक संभु एंतु खरं तु ।
सारुदारुणदू सन्तु । हालिरंतु नियच्छिउ सीहु । यिकिय लछि सरोवरि ति । यिच्छित दामयजुम्भु णहत्थु । यिचि तिबु तबंतु दिणिंदु | यिच्छ्रिय मच्छ चलंत वलंत । णियच्छिय कुंभ वरंभपचण | विरंग सिलिंजय चषिखयणालु । यि तामरसायेरे रुंदु । नियच्छिउ बारिर उद्दु समुदु |
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बत्ता — दूसरे दिन रात्रिके अन्तिम प्रहर में प्रासादके अन्तिम तलमें सोते हुए रानीने स्वप्नमाला देखी ||४||
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जो सुधा, चन्द्र और शरद्कालीन मेघके समान सफेद रंगका है, जिसकी सूंड लम्बी है, जो हिलते हुए कानोंवाला है, और जिसके कपोलभागसे मद मर रहा है ऐसा गजराज देखा, जो मानो जंगम पहाड़ हो । अपने लोव्र खुरोंसे धरती के अग्रभागको रोता हुआ, बलशाली, बलसे स्खलित होता हुआ, सींग घुनता हुआ, सामने गाता हुआ, गरजता हुआ विशेष वृषभेन्द्र देखा । पहाड़ोंकी गुफाओं मोर कुहरोंमें रहनेवाला, क्रोधसे अरुण और भयंकर नेत्रवाला लतादलके समान चंचल जीभको हिलाता हुआ, नखावलीसे भास्वर सिंह देखा । चन्द्रमाको तरह श्वेत और ferrint कान्तिवाल लक्ष्मीको सरोवर में स्नान करते हुए देखा। अनेक पुष्प समूहोंसे गूँथी हुई मालाओंका युग्म आकाशमें देखा । रात्रिके अन्धकारको नष्ट करनेवाला निर्मल चन्द्र देखा । तीव्रतम तपता हुआ सूर्य देखा, प्रमत्त रमण करती हुई, सरोवर में तैरती हुईं, चलतो मुड़ती हुई मछलियाँ देखीं । कुम्भमालामें रखा हुआ मघु कमळोंसे ढका हुआ उत्तम जलसे परिपूर्ण घड़ा देखा, जिसमें डूबने और कोड़ा करने में गजेन्द्र लोन है, जो भ्रमरोंके शब्द और पुष्पित कमलोंके रजसे युक्त है, जिसमें हंसों के बच्चे मृगाल खा रहे हैं, ऐसा विशाल सरोवर देखा । जो दिखाई देनेवाले
९.लि सुत्तिय; P ले सुत |
५. १. A कबोल । २. P गईव । ३ AP विसेसु विसेसु । ४. AP रतु । ५. AP | ६. A reads this line after चक्खियालु below. ७. A भमंतु । ८. AP बहंदि । ९. AP अलीरत ।
१०.
A कीलसील: P कीलणणीलु । ११. P रसाय । १९. AP रखद्द्द्द् ।