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________________ महापुराण [४३. ३.१२सहेवि परीसह भीमुघसम्म मुणिसणवित्ति चिणेवि समम्गे'। चएप्पिणु दुव्यहसीलवहार णिरिकवहूणिवमत्तकहा। तवेण करेवि फलेवर खामु णिबंधिवि गोत्तु जिणेसरणामु । १५ विहंडिवि छडिवि चंडु तिदंड "मओ पमुएवि चउन्विहपिंछु । पत्ता-अवराइल रिसि उरिशियहि पारनंदहि गिर बनहिं . . पीईकरणामविमाणवरि सुरु जायउ गेवजहि ॥३॥ गिहीगुणठाणवएहिं विमीस तहि तहु आउ महोवहि वीस । सेंसंतहु अंतरु तेत्तिय पक्ख दुत्थिपमाणिय बोंदि वलक्ख । ण को वि महीयलि संणिहु जासु दिणेहिं अहंसुरणाहह तासु । छमार्से परिहिउ आउसु जाव इणं घणवाहि पजंपा तांव। पुरीकासंबिवई मेणीसु। धराधरणो धरणीसु महीमु। सुसीम णियंबिणि वल्लह तस्स अखंडसुहारुईसोम्ममुहस्स। भिस भरहेसरवंसरुहस्स करेहि दिहिं णिलय व णिवस्स । अहो णिहिणाह विहंसियसोट पहोसइ णंदणु णंदियलोउ । तओ धणिणा पुरुपेसणरम्मु विणिम्मिउं भन्मविणिम्मियहम्मु । मैथुन ), अपने ज्ञानरूपी जलसे कलंकको धोकर, भयंकर उपसर्ग और परीषह सहन कर, सम्पूर्ण रूपसे मुनीन्द्रवृत्तिको स्वीकार कर, दुर्वहशीलका नाश करनेवाली चोर, स्त्री और नृपभक्तिकी कथाओंका त्याग कर, तपसे अपने शरीरको क्षोण बनाकर, तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध कर, प्रचण्ड त्रिदण्डको खण्डित कर और छोड़कर, तथा चार प्रकारके आहारका त्याग कर वह मृत्युको प्राप्त हुआ। पत्ता-वह अपराजित मुनि, मनुष्यों के द्वारा वन्दनीय निरखद्य ग्रेवेयक विमानोंमें से तीसरे प्रोतकर विमानमें देव उत्पन्न हुए ||३|| ____ गृहस्थोंके ग्यारह व्रतोंसे मिली हुई बीस सागर, अर्थात् इकतीस सागर प्रमाण उनको आयु थो। उतने ही पक्षोंमें अर्थात् इकतीस पक्षोंमें वह सांस लेते थे। उनका शरीर दो-दो हाथ प्रमाण और शुक्ल था। जिसके समान धरतोपर कोई नहीं था। उस अहमेंद्र देवराजके कई दिनों के बाद छह माह आयु शेष रह गयी । तब इन्द्र कुबेरसे कहता है कि "कौशाम्बी नगरीका पृथ्वीको धोखा करनेवाला मनस्वी राजा धरण है। सम्पूर्ण चन्द्र के समान सौम्य मुख वाले उसकी सुसीमा नामको प्रिय पत्नी है 1 वह भरतेश्वरके वंशका अंकुर है। उसके लिए हे कुबेर, तुम भाग्य और घरकी रचना करो। हे कुबेर, उनके शोकका उपहास करनेवाला और लोकको हर्ष उत्पन्न करनेवाला पुत्र होगा।" तब कुबेरने इन्द्र के आदेशसे रम्य स्वर्णप्रासाद बनाया। ११. A वसरिंग । १२. A समगि । १३. A P मुषो । १४. 4 पोईकरणाम; P पोय करमाण । ४. १. A भाव । २.A सुगंतह। ३ P दिवलय हत्यप । ४. A F छमास । ५. A मुणोम् । ६. A घरणोद्धरणे । ७. A तासु । ८. A "सुहायरसोन्ममुहासु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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