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________________ भविस्स जिनिंद अदिसमीह जगुत्तमु गोत्तमु भासइ एंव सयामयणाहि सुंगंधसमीरि सकच्छउ वच्छउ देसु विसालु समीवसमीवपरिट्ठियगामु फलोणयछेत्तणियत्तणरिधु aft पुरि अस्थि पसिद्ध सुसीम दुभूमितिभूमिसमुण्णयणीड सरोरुह केसर लग्गदुरेह हरीमणिबद्धमणोहरमग्ग तहिं अपरजिउ णाम णरिंदु रई व भाविणिर्दुल्लाहसंगु महापुराण घत्ता - धादसंडइ दीवम्मि वरे जणगोहणसंकिण्णइ || पुव्वमेव दिसइ पुण्वविदेहि रवण्णइ ॥ १ ॥ अहो सुणि सेणियराय मिसीह | सुति महोरय दाणव देव । [ ४३. १. १४ ० २ सुसी सीहि दाहिणतीरि । मलविवि हिण्णमुणालु । पैणवासिपऊरियकामु । पिओ जहिं रोसणियत्तणणिधु । दुवारविलंबिय मोत्तियदाम | महंत रंतवण्णकवाड । जिणालयचूलिय चंबियमेह | णिभोयविसेस विसेसियसग्ग | करिंदु व दाणि कुलंब चंदु | सरास जेम गुणेण वियंगु । १० सुन्दर चरितको कहता हूँ । उत्तम और सम्यक् चेष्टावाले हे भावी जिनेन्द्र, नृसिंह, हे श्रेणिक सुनो। विश्व में श्रेष्ठ गोतम इस प्रकार कहते हैं और उसे नाग, दानव और देव सुनते हैं । घत्ता - धातकीखण्डद्वीपमें मनुष्यों और गोधनसे परिपूर्ण सुन्दर पूर्वविदेह, पूर्वसुमेरु पर्वत के पूर्व में है ॥ १ ॥ अत्यन्त शीतल सीता नदोके, कस्तूरीमृगोंसे सुगन्धित समोरवाले दक्षिण तटपर, सोमो - द्यानोंसे सहित विशाल वत्स देश है, जिसमें हंसपक्षी मृणालोंको छिन्न-भिन्न कर देते हैं, जहाँ ग्राम अत्यन्त पास-पास बसे हुए हैं, जहाँ थके हुए प्रवासियोंकी कामनाएं पूरी की जाती हैं, जो फलोंसे झुके हुए खेतोंके नियन्त्रणसे समृद्ध हैं, जहाँ प्रिय क्रोध के नियन्त्रणसे स्निग्ध हैं। ऐसे उस वत्स देशमें सुप्रसिद्ध सुसीमा नगरी है, जिसके द्वार-द्वारपर मोतियोंकी मालाएं लटकी हुई हैं, जहां दो या तीन भूमियों (मंजिलों) से ऊंचे मकान हैं, खूब चमकते हुए स्वर्ण किवाड़ हैं, जहाँ भ्रमर कमलोंपर मड़रा रहे हैं तथा जिनमन्दिरोंके शिखर आकाशको चूम रहे हैं। जहां हरितमणियों ( मरकत ) मणियोंसे निबद्ध सुन्दर मार्ग हैं। मनुष्योंके भोग विशेषोंसे जो स्वर्गसे विशिष्ट हैं। ऐसी उस नगरीमें अपराजित नामका राजा था, जो करीन्द्रकी तरह दानी (मदजल और दानवाला) अपने कुलरूपी आकाशका चन्द्र था । कामदेव होकर भी जिसका संग, कामिनियोंके लिए दुर्लभ था । धनुषके समान जो गुणोंसे वक्र था, जो तेल की तरह खल (खली और दुष्ट) से रहित और स्नेहपूर्ण ० २.१. सुगंध; सुयं । २. P तीरिणि । ३. A मरालमुहग्गं । ४. A पहीणं । ५. A पवासिय ऊरिय; P°पवासियपूरियं । ६. A पतंजहि । ७. P कुलंबरइंदु । ८. P भामिणिदुण्णयसंकु । ९. P अकु |
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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