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________________ २१. १२.२J हिन्दी अनुवाद अपूर्व प्रसाद किया, मुझ दासको आप इतनी उन्नति पर ले गये ! तब राजा रातमें देखा हुआ स्वप्न उसे बताता है कि तुम्हारे द्वारा मेरा जीवन बचाया गया है ।" मन्त्री बोला--"मैं छिपाकर नहीं लूंगा। तुमने जो स्वप्न देखा है उसे मैं कहता हूं। जिन्होंने तुम्हें चौपा है वे खोटे गुरु हैं। जो कोचड़ है, वही दुर्गतिका कष्ट है, जो जल है वह जिनवरका वचन है, सुविशुद्धतम तुम्हें मैंने धोया है और जो सिंहासन पर आरोहण है, वह सुगतिका सुख है। फिर वह, विकसित मुख उससे कहता है ? पत्ता-मैं कहता हूँ कि चारणमुनि वारा कहा गया हे देव, कभी भी झूठ नहीं हो सकता। श्वासके साथ, एक माहमें तुम्हारी आयु परिसमाप्त हो जायेगी ॥१०॥ तब, पापसे शान्त महाबल कहता है-'तुम मेरे कल्याणमित्र और परम बन्धु हो। तुम मेरे पिता और दाएं हाथ हो, शान्ति करनेवाले आधार स्तम्भ हो। मेरी मृत्यु निकट है अब तप क्या करूंगा ? मैं इस समय संन्याससे मरता हूँ। इस प्रकार कहकर हाथ जोड़े हुए अपने पुत्र अतिवलको राज्य देकर उसने परिजनोंसें क्षमा मांगो। मुनिभावनाके सूत्रों की भावना की। शारीर मन वय और सिरको भी मूड़ लिया, विद्याधर राजाने इन्द्रियों को भी दण्डित किया । पापसे भरे आचरण छोड़ दिये, मायामिथ्यात्वोंको खण्डित किया। समस्त परिग्रहका परिहार कर आदरणीय अरहन्तकी याद कर आन्दोलित सहकार बनमें सहस्रशिखर जिनमन्दिरमें जाकर स्थित हो गया । पत्ता-पाद्ध पवित्र जिन प्रतिमाओंकी कि जिनपर भ्रमरोंको उड़ाते हुए चमरोंसे विद्याधर कुमारियों के द्वारा हवा की जा रही है। उसने अभिषेक और पूजा को ||११|| जिनके चरण-कमलों में भुवनमय पड़ता है, जिनके ऊपर तोन छय स्थित हैं, जिनके चरण, देवेन्द्र समूह द्वार वन्दित हैं, ऐमे परमपदमें स्थित जिनकी उसने पूजा प्रारम्भ को। उसने अपने स्थूल हाथोंमें नैवेद्य ले लिया, उसने माताके समान धूय ( कन्या और धून ) ऊंची कर ली। जो पूजा, हस्सिघटाके समान घण्टाओंसे मुखरित थी, श्रेष्ठ राजाकी सेवाकी तरह सफल, ममुद्रकी वेलाके समान स्वरयुक्त, बेश्याके समान दार्पण दिखानेवालो, वृक्षपंक्तिकी तरह विविध कुसुमों और फलोंसे स्थापित, आकाशकी लक्ष्मी के समान प्रचुर के तुओं ( पताकाओं और ग्रहों ) से आच्छादित है, जो प्रथम नरक भूमिकी तरह दीप्त दीयों ( होपों, दोपों ) से सहित है। जो देव-पर्वतकी तरह चन्दनसे सुवासित है। आठ दिन तक जिनकी पूजा कर और बाईस दिन तक संन्यासतिसे उसने सलेखना मरण विधि की और शुभध्यानका आरम्भ करनेपर उसके प्राण चले गये।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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