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________________ २७. २१.४] हिन्दी अनुवाद पिताके संसार-त्यागका समय जानकर शौत अपना मुख नीचा कर, पवित्र बुद्धि और शीलका आश्रय भरत अश्वापद शिखरपर आया। उसने देखा-गिरि मधुवृक्षोंके च्युत आसवसे शोभित है, जिन रुद्ध आस्रवोंके कारण शोमित हैं, गिरि बहते हुए सरनोंसे शोभित है, जिन कोंकी निर्जराओंसे शोभित हैं, गिरि नाना प्रकारके मगोंसे शोभित है, जिन नाना प्रकारके मदरहित मुनियोंसे शोभित हैं। गिरि नाचते हुए मयूरोंसे शोभित है, शोभा सहित उरगोंसे शोभित हैं, गिरि धर्म नामक ( अर्जुन) वृक्षसे शोभित है, जिन धर्म और न्यायसे शोमित है, जिस प्रकार गिरि शवरराजसे सहित है, उसी प्रकार जिन प्रणाम करते हुए भरतराज से। धत्ता-तब स्वामी आदिनाथ समुद्घात विशेषसे लम्बे समयकी सन्तानवाले वेदनीय नाम और गोत्र तीनों कर्मोका आयुप्रमाण कर दिया ||१९|| २० मुनिप्रवरने, विशालतामें अपने पारोरके मानका क्रियाविधान किया ( अर्थात् शरीरसे आत्माके प्रदेशोंको बाहर निकालना शुरू किया ), दण्डाकारके रूपमें जीवको बाहर निकाला और उसे तोनों लोकोंके अग्रभागमें, नित्यनिगोद नरकके निकट तक ले गये। फिर उन्होंने सुरीदका अड्डड्ड प्रसारित किया (.............) मानो तीनों लोकोंके लिए किवाड़ दे दिया हो। देवने देवोंसे प्रणम्य अपनेको प्रवर आकारमें स्थापित किया। समस्त लोकका आपूरण कर, फिर विपरीत भावसे संवरण कर ( अर्थात् लोकपूरण, संवरण, रुजक्कार संवरण और दण्डाकार संवरण कर) उन्होंने तेजस्, कामिक और औदारिक तीनों शरीरोंको निश्चल बना लिया। फिर तीनों सूक्ष्म तीन क्रियाओंको छोड़कर चौथे सक्षम किया शक्लध्यानमें स्थित हए। वहां वह आयोग शुक्लध्यानमें अवतरित हुए, वह मन, वचन और कायसे मुक्त होकर शोभित हुए । स्वामी श्रेष्ठ, इस प्रकार अपनी देहके भीतर स्थित होकर जितना समय 'क ख ग घ ङ' समाक्षरोंके कथनका समय है, उसमें विद्यमान होते हुए भी देव शरीरको नहीं छूते। जिस प्रकार छिलका निकल जानेपर पके हुए एरण्डका बोज ( ऊपर जाता है)। पत्ता-उसी प्रकार वह दर्शनज्ञानादि और आठ सितगुणोंसे सम्पूर्ण हो गये। वह अपने स्वभावसे, जाकर परमपदमें स्थित हो गये ॥२०॥ तब देवेन्द्रने अरहन्तको मानवमनोश पांचवें कल्याण की पूजा की। स्थामीके देहको श्वेत शिविकामें रखा गया, मानो कैलास शिखरपर अरुण मेष हो। सैकड़ों भभा-भेरी, झल्लरि और तुर्य वाद्य देववादकों द्वारा मजा दिये गये । गाती हुई हिम्नर स्त्रियों, नापती हुई नाग स्त्रियों,
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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