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________________ ४२५ महापुराण [ ३७.१९.१ जाणिव जणणहु जणणचयणु लड्डेयउ ओ? लिड फरिवि वयणु । सुषिसुद्धबुद्धिसीलावयासु आयश्च भरहु वि अट्ठावयासु । गिरि सोहा चुयमहुआसवेहि जिणु सोहइ द्धहिं आसवेहि । गिरि सोहइ विलियणिज्झरेहि जिणु सोहइ कम्महुँ णिजरेहिं । गिरि सोहइ णाणाधिहम एहि । जिणु सोहइ रिसिहि सुणिम्महि । गिरि सोहाणश्चियमोर जिणु सोहइ सुरसरमोरयहि । गिरि सोहइ धम्मणएण जेम जिणु सोहइ धम्मणएण तेम । गिरि परियषित सवराहिवेण जिणु पणवते भरहाहियेण । पत्ता-दाणाहु समुग्घायंतरहिं दीहसमयसंताणई॥ वेयणियणामगोसई करइ विणि वि आउपमाणई ।।१९।। २० मुणिपवर किट किरियाविहाणु दत्तणेण ससरीरमाणु । णीसारिच दंडायारु जीउ तिजगग्गचरमणरयंतु णीउ । अइपसारिउ पुणु सुरीड णं तिहुयणघरि दिण्ण कवाडु। अपाणन देवे देवणविउ रूंआयार सहस ति थविउ । णीसेसलोयपूरणु करेवि विवरीए चारें संपरेवि। तेजइयकम्मओरालियाई तिपिण वि अंगई णिहालियाई। मुणि मेनिवि तिजल सुहमफिरित संपत्तु पत्थु छिण्णकिरिउ । तहि सुकमाणि आयत अोइ मणवयणकायमकर विहाद। थित देहभंतरि सामिसालु क ख ग घ समक्खरभणणकालु | अच्छंतु वि अंगु ण छिवइ देउ फलछमि व जरदेरंडबीउ । पत्ता-दसणणाणाइहिं वसुसमहि सिद्धगुणहि संपण्णउ ॥ ससहा जोइवि परमपए परमेसरु संपण्णउ ।।२०।। २१ ता सके कय माणवमणोज अरुहहु पंचमकजाणपुज्ज । सियसिवियहि णिहियस णाहदेहु कालाससिहरि णं अरुणमेहु । भंभाभेरीक्षारिसथाई सुरतूरिएहिं तुरई हयाई। गायंतिहि किंणरकामिणीहिं णचंतिहिं फणिसीमंतिणीहिं। १९. १. MB जाणिवि समजणणनु । २. M लइयउ । ३. MB ओहल्लि। ४. T; ससमोरएहि इति पाठे उपशमयुक्ताश्च ते उरगाश्च । ५. B गोत्तहु । २०. १. G सरीछु । २. M फयरापार; B कयासारे; T पयराया। ३. MB विवरी; T विवरोएं। ४. MBT णिव्वालियाई, ५. Bण । ६. MB भरण । ७. MB जरखे। ८. MB वसुसमिहिं। ९. MB जाइबि उड्ढगह तिहयनिहरि पिसण्णव । २१. १. MB सुरतूरएहिं ।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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