SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 432
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सन्धि ३७ राजा जयकुमारने बनायत ( आगामी ) तेईस तीर्थकरोंके, जिनसे किरणोंका समूह प्रसारित हो रहा है, ऐसी रत्ननिर्मित प्रतिमाओंको बन्दना की। जबतक सुन्दरी चैत्योंकी वन्दना करती है कि वहाँ दो मुनिवर विद्यमान थे। वे दोनों देवोंके साथ उस समवसरणके लिए गये, जहाँ त्रिलोकशरण ऋषभ निवास करते थे। वधूवर भी गुरु चरणोंको नमस्कार कर उसी मार्गसे वहाँ गये। जिन भगवान के दर्शनोंको इच्छा रखनेवाले उन दोनोंने भी वहां पहुंचकर वर विजय वैजयन्तादि चारों दरवाजों धौर तोरणोंको देखा। मानरूपी मन्दराचलका नाश करनेवाले तथा माणिक्यको किरणोंसे उज्ज्वल मानस्तम्भ, सरोवरोंकी स्वच्छ खाइयों, खिली हुई लताओंवाली वेदिकाओं, प्राकारों, नटराजोंके घरों, मुनिनाघोंके निवासों, कल्पवृक्षोंके वन और एक योजनका बना हुआ मण्डप देखा, जिसमें विश्वजन समूह बैठा हुआ था। बत्तीस इन्द्र, (कल्पवासी १२, भवनवासी १०, व्यन्तर ८ ओर चन्द्र तथा सूर्य) एक भरतेश्वर चक्रवर्ती, जो मानो दूसरा इन्द्र था, ज्योतिषपति और चन्द्रसूर्य कि जो सत्पुरुषों मोर महापुरुषोंको पीड़ा उत्पन्न करनेवाले हैं, किन्नरपति दोनों महानागराज, कि जो काय और महाकायांकसे अत्यन्त भयानक थे। पत्ता-किंपुरुषोंके दो इन्द्र थे जो पुरुष और किंपुरुष कहे जाते हैं। सोमप्रभके पुत्रने अपनी गृहिणीको नये सूर्यके समान छवि देखकर ॥१॥ गन्धर्वोका समविषम नामका राजा। राक्षसोंके भीम और अत्यन्त मोम, यक्षेन्द्र पुन: पुण्यभद्र और मणिभद्र कहे जाते हैं। भूतोंके राजा रूप और विरूप हैं। पिपाचोंमें वहां काल और २-५२
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy