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________________ ३२. ४.६] हिन्दी अनुवाद प्रेरित किया (हाका) था ऐसे-उन्होंने उपवन में कोमल वटका वृक्ष देखा जो घामको नष्ट करनेवाला, दलों और फलोसे लदा हुआ था। वहां पत्थरसे निर्मित अनेक रत्नोंसे जड़ा हुआ, मनुष्यों के द्वारा बुधजनोंके वचनोंसे संस्तुत जगपाल नामके यक्ष और मनुष्योंके मेलेको देखा। पत्ता-जगपाल राजाके तपश्चरणके कारण लोगोंने उस सुर ( यक्ष ) को वनमें स्थापित किया था। उस यक्षके आगे मनुष्योंका जोड़ा नृत्य कर रहा था। राजा वसुपाल कहता है कि है श्रीपाल ! सुनो- || यदि दोनों नर, नर या नारी, नारी होकर नाचते तो सुन्दर होता । यह सुनकर कुमार श्रीपालने कहा कि हे देव-देव ! मैंने निश्चित रूपसे जान लिया है कि यह दुसरी सरल और सुकुमार महिला है, जो मनुष्य रूपमें नाच रही है। उस अवसरपर कामने अपना तीर छोड़ा और मायावी पुरुषने सुन्दर कुमारको देखा। उसकी नींवोकी गांठ ढोलो पड़ गयी, नेत्र घूमने लगे और मन कांप उठा, ओठ फड़क गये, पसीना छूटने लगा, कसकर बंधा हुआ केशपाश भी छूट गया, मुख सूखने लगा और वह लड़खड़ाते शब्दोंमें बोलने लगी। तब कंचुकी उस सहृदयसे कहता है कि पुष्कलावती देशमें सुन्दर प्रासादोंवाला रम्यक नामका देश है जो धन-समूहसे रमणीय है। श्रीपुर नगरमें उसका राजा लक्ष्मीधर है, उसकी शुभ करनेवाली जयावती रानी है, उसकी आदरणीय 'यशोवती' नामकी लड़को थी। राजाओंमें श्रेष्ठ उस राजाने जगतपति मुनिको प्रणाम करके पूछा--जिन्होंने कामदेवके दर्परूपी वृक्षकी जड़ोंको नष्ट कर दिया है, ऐसे इन्द्रभूति मुनीन्द्रने कहा था--जो इस कन्याको पुरुषरूपमें नाचते हुए पहचान लेगा, वही इस कन्याके यौवनका आनन्द लेगा। यह सुनकर राजाने मझे रसभाव उत्पन्न करनेवाले गायन ओर वादनकी शिक्षा दिलायी। मन्त्रियोंने जिस प्रकार जैसा देखा था, उस कामको उन्होंने आज प्रकाशित किया। धत्ता-ध्वजपटवाले, गांवों, नगरों, खेड़ों और कब्बड गांवोंमें जा-जाकर इस कन्याको इस प्रकार नचाओ और दिखाओ, जिससे इसका वर शीघ्र देख ले ।।३।। प्रत्यक्ष बिना किसी बाधाके उसे देखो-देखो। "तब एक नगरसे दूसरे नगरमें नाचती हुई और नौरसरूपी जलसे लोगोंको सींचती हुई, इस कन्याको लाया हूँ--जो मानो बन-देवताको तरह है । इस समय इस नगरमें आया हूँ। तुम्हें मैंने देख लिया है, तुम इस कन्याके वर हो गये। और जो उस मुग्धाको सुन्दर आँखोंवाली सहेली नृत्य करती है वह दूसरो नटराजकी पुत्री है। तब उस युवेशने उन लोगोंके लिए वस्त्र, आभरण और प्रशस्त घर दिये । इसी बीचमें सुधीजनों
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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