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________________ ३०. २३.७] हिन्दी अनुवाद २८१ जलाने के लिए यह निकला है, और देवके वशसे यह हम लोगोंके लिए मिल गया है। यह कहकर वे दोनों मुनि और आर्यिका बन गये और धरतीके आसनपर बैठ गये । अपने कुलरूपी कुमुदके चन्द्र स्वर्णवर्माने दोनों को भावपूर्वक वन्दना की। तब माया मुनिवरदेवने कहा- "है पुत्र, तुम कुपित क्यों हो, हम दोनों तो जीवित हैं। वह भावक राजा मुनिथुगलको क्या मार सकता है ? वह राजा ( गुणपाल ) तो आज भी हृदय में दुःखी है । घसा -- जिस पापोने हम लोगों को मारा है उसको तो सर्वत्र खोज लिया गया । हे पुत्र, गुणपाल राजाने अपनेको शोकसे सुखा डाला है ॥२१॥ wwwhat was २२ यद्यपि हुम 'लोग मर गये हैं तो भी मरे नहीं हैं, हम दोनों अमृतका भोग करनेवाले दिव्य शरीरवाले एवं अणिमा-महिमा आदिसे गम्भीर देव हुए। बारबार उन्होंने संसारके पुण्यकी प्रशंसा की, और उन्होंने अपने रूपका प्रदर्शन किया। स्वर्णवर्माने क्षमाभाव धारण किया। और देव द्वारा दिये गये आभूषणोंसे अपने को विभूषित किया। वह विद्याधर राजा अपने निवासके लिए चला गया । वत्सदेशमें शिवघोष जिनवर हैं उनकी वन्दनाके लिए देवेन्द्र आया और अरुहृदत्त नामका चक्रवर्ती और भी, वह अप्सरा तथा वह देव । समीचीन उपशम भावसे उसने स्तुति की। जिनेन्द्र भगवान्‌की दिव्यध्वनिसे जिनके कान रंजित हैं ऐसे सब लोग जब बैठे हुए थे, तभी वहां बादमें इन्द्रकी शची और मेनका नामक स्त्रियां अवतरित हुई। चक्रेश्वर अदत्तने जिनसे प्रकट पूछा कि इन्होंने कौन-सा गृहकर्म विधान किया है, अपने मुखरागको प्रकट करनेवाला यह देवयुगल इन्द्रके साथ क्यों नहीं आया ? तब केवलज्ञानरूपी दीपकसे देखो गयी बात जिननाथने चक्रवर्तीसे कही । बत्ता - माला बनानेवाली इन दोनोंने वनमें कर्मको नष्ट करनेवाले मुनिको वनमें देखा, और उसकी वन्दना की। दोनों हाथ जोड़कर भावपूर्वक श्रावकधर्मं सुना ॥२२॥ २३ उन्होंने यह व्रत लिया कि तबतक घर के कामसे निवृत्ति रहेगी कि जबतक जिनेन्द्र भवन नहीं जातीं। अपने सिरको भक्तिसे झुकाकर देव अरहन्तको नमस्कार कहकर वे दोनों चन्द्र और सूर्य हैं नेत्र जिसके ऐसे गगनको सबसे पहले मालाएँ अर्पित करतीं। इस नियम के साथ उनका बहुत-सा समय चला गया। एक दिन चन्दनलता- घरमें एक करकमलमें नागने काट खाया, उसके मुँहसे हा-हा शब्द निकला। सखी अपनी सखी के पास दौड़ी, वह भी सौपके द्वारा काट २-३६
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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