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________________ सन्धि ३० अमृतमतो और अनन्तमती सतियों तथा जिनवती, गुणवती तथा श्रेष्ठ पशोवती आदि द्वारा शीलगुणोंसे प्रसाधित बन्धुवर्गको सम्बोधित किया गया। वह राजा लोकपाल, वह रानी वसुमती, जो इन्द्राणी-जैसी स्त्रियोंके समान थी, बारह प्रकारको दोसासे, वे दोनों श्रावकवतके अपने मार्गमें लग गये । शान्ति आयिकाने निरन्तर धर्मका आख्यान किया। अन्तःपुर जिनमार्गमें लग गया। इतने में जिसमें नित्य उत्सव मंगलका निर्घोष हो रहा है ऐसे कुबेरकान्तके निवासस्थानपर चरियामागमें रागसे रहित बंधाचारणयुगल आया। प्रियदत्ताके पति लोकपालने उसे नमस्कार किया, उसने भी शीघ्र उसके आँगनमें पैर रखा । इतने में वहां दो पक्षी आये, भक्त वे मुनिके चरणोंकी धूल अपने पंखोंसे झाड़ते हैं। दोनों गुणी मुनियोंने देखते हुए 'धर्मबुद्धि हो' यह कहा। ऋषिको देखकर और अपना पूर्वभव याद कर पक्षियोंका वह जोड़ा मूच्छित हो गया। धरतीपर गिरते हुए उसे लोगोंने देखा। पानी सोंचे जानेपर जब वे सचेत छए तो केवल एक दूसरेके प्रति विरक्त हो उठे। पक्षी याद करता है, पक्षिणी क्या करती है। मेरी प्रणयिनी रतिवेगा कहाँ है। पक्षिणी याद करती है कि पूर्णचन्द्र के समान कान्तिवाले सुकान्तके बिना मैं किस प्रकार जीवित रहूंगी? पत्ता-पहले शोभापुरमें यह वधूवर थे और इस समय नभचर दम्पति हैं। धरतीतलपर पड़े हुए देखकर ( और इसे ) अन्तराय मानकर मुनिवर चले गये ॥१|| नवकमलोंके समान नेत्रोंवाली प्रियदत्ता और वसुमतीके द्वारा पूछे जानेपर दोनोंने चोंचोंसे लिखे गये गत भवके नामोंको रख दिया। पक्षिणीके द्वारा अपना पति सुकान्त बता दिया गया, और पक्षोके लिए रतिवेगाका आगमन बता दिया गया । "अलग-अलग होकर मत विचरो, एक
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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