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{ २९.८.११
महापुराण पत्ता-वेउवि घर मणिणिम्मिस चारुतीरि संयसेविए ।
हरिऊढइ थविवि सुपीढइ हविय सुलोयण देविए ।।८।।
दिण्णइंसुरजोग्गइं णिवसणाई। दिण्णई अपणेण्णई भूसणाई। दिण्णी वियसिय मंदारमाल सह णरवरेण विभइय बाल । पभणइ का तुहं करि केण धरिस किं वारिय सरि सो कवणु तरिउ ।
सुरगुंशशि राशि : ला समद सा वि हिंडियपुलिंदि । विउरिक डा विंझहरि अस्थि पइ विझकेउ बलकलियहथि । महएवि पियंगुसिरी सुरूय इस विझसिरी णामेण धूय । परियाणवि तापं तुह पहार सिक्खहुं णीसेसु कलाकला। हउं तुझु समप्पिय हे वयंसि संभैरसि ण कीलहुं जं गयासि । णंदणवणि विरलि संततिलइ हउं दही सप्पे वेल्लिणिलइ । असिआरसाई बंजणविसिट्ठ पई परम मंत महु पंच सिट्ठ 1 घत्ता-ते णिसुणिवि दुकिड णिहणिवि यही लद्ध विहूई।
सुरणीडइ गंगाकूडइ गंगादेवय हुई ।।२।।
कोलंती कुच्छियविसहरेण सह सरसें णाहें णिव्मरेण । जा पहय सरलदलकोमलेण तुइ कत कररत्तुप्पलेण । जाणासंती अवरहिं परेहिं । मुसुमूरिय दंडहिं पत्थरेहिं । सा हुई णिसुणहि हलि पियालि जलदेवय णामें पत्थु कालि। ओलक्विधि अउ वइराणिबंधु पवणंदोलणघोलतचिंधु। मयरीइ हवेप्पिणु कूरिमाइ कुंजर कदिउ कुद्धाइ साइ। मई जाणिउं आसणकपणेण जा जणिय मयच्छि अकंपणेण । सा कि हम्मइ खलकालियाइ मुणिमइ किं छिप्पइ कालियाई । इय चिंतिथि हल अवयरिय जाम घारिणि गय णासिवि कहिं वि वाम । मई उत्तारिख सिंधुरु बलेण तुह हूयव सुह सुक्कियफलेण। घत्ता-मलु तुट्टइ बुद्धि पयहइ दिस वसुधारहिं दुब्मइ ।।।
रिउ णासइ णिहि धरि णइस धम्में काई ण लगभइ ॥१०॥
८. MB सुयसेविए । २. १. B अण्णई । २. MB सई । ३. MB तारिउ । ४. MR दिझइरि। ५. MB संभरिसि । १०. १. MB णिसुणहि हुई । २. MB कोषेण ।