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________________ २२.८.१०] हिन्दी अनुवाद २३९ परम उन्नतिको प्राप्त हुआ। आगकी तुलनामें कोई दूसरा उष्ण नहीं है। परमाणुसे अधिक दूसरा सूक्ष्म नहीं है । आकाशके आंगनसे अधिक महान दूसरा नहीं है। कामातुरके समान दूसरा कोई संगी नहीं है । जिनको छोड़कर कोन त्रिलोकस्वामी हो सकता है ? तुम्हें छोड़कर सुभटोंमें अग्रगामी कोन है? पत्ता-जो दुःखित था उसकी परिरक्षा कर दी गयी। जो दुर्लभ था उसे पा लिया। तुम्हारे रहने और युद्ध में प्रहार करते हुए हे जय ! मुझे क्या सिद्ध नहीं हुआ ? ॥६॥ । यह कहकर राजाने महानु जयकुमारको विजित कर दिया। वह तुरन्त अपने शिविरमें गया। वह विजयाध महागजेन्द्रपर आरूढ़ हुआ मानो दिनकर उदयाचलपर आरूढ़ हुआ हो । सेना घल पड़ी। उसने प्रस्थान किया। वह गंगाके जलके मध्यभागमें पहुँचा। वह गंगाकी सारस जोड़ोको देखकर, कान्ताके स्तनरूपी कलशयुगलको देखता है। गंगाकी सुन्दर तरंगको देखकर, अपनी कान्ताको त्रियलि तरंगको देखता है। गंगाके आवर्त भंवरको देखकर, कान्ताकी श्रेष्ठ नाभिरमणको देखता है। गंगाका खिला हुआ कमल देखकर, प्रिय कान्ताका मुखकमल देखता है। गंगाके विचरते हुए मत्स्य देखकर, कान्ताकी चंचल लम्बी आँखोंको देखता है। गंगाकी मोतियोंकी पंक्ति देखकर, वह कान्ताको श्वेत दशनपक्ति देखता है। गंगाकी मत्त अलिमाला देखकर, कान्ताको नीलो चोटी देखता है। धत्ता--जब सुख देनेवाली मन्दाकिनी ( गंगा ) राजाको बैसे ही दिखाई दी जैसी अपनी गृहिणी कामकी नदी सुलोचना ॥७॥ उस अवसरपर इन्द्र के ऐरावतके समान लीलावाले उसके हाथीको मगरने पकड़ लिया । प्रगलित है मदजल जिससे ऐसा वह गज वधूवर के साथ, अत्यधिक जलके आवर्तवाले हमें जाने लगा। प्रियके दुःखको देखने वाली सुलोचना जोरसे 'हा' को आवाज को । उसको ( गजकी) पूंछ कक्षाके मध्य लगनेपर, तथा हा-हा शब्दका कोलाहल बढ़नेपर, अपनी कान्तिसे सूर्यको परास्त करनेवाले हेमांगद प्रमुख कुमार यह देखकर वहां पहुंचे। इसी बीच, जिसका आसन कॉप गया है, तथा जो देवांग वस्त्रोंसे पवित्र निवासमें रहनेवाली है, ऐसी शत्रका विनाश करनेवाली वनदेवीने गजको गंगाके किनारेपर ऐसे खींचा, मानो धनसम्पत्तिने कामदेवको खींचा हो, मानो अहिंसाने त्रिलोकका उद्धार किया हो । आधे पलमें वह सुरसरिके तटपर ले जाया गया। किंकर समूह आनन्दसे नाच उठा। रण-वन-जल और आममें पड़नेपर पुरुषको पूर्वाजित कम हो बचाता है।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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