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________________ सन्धि २९ जो युद्ध में अवरुद्ध थे और बांध लिये गये थे उन राजाओंको मुक्त कर उनका प्रिय वचनों और वस्त्राभरणोंसे सम्मान किया गया और उन्हें अपने-अपने घरके लिए विसर्जित किया गया। जब कुमार अकीति यह सोचता है कि मैं बन्धनको प्राप्त क्यों हुआ? तब जिनचरणमें लीन और निश्चल मनवाला राजा अकम्पन कहता है:-"तुम बांधे गये मानो राजवंशमें पताका बंध गयी, तुम बाँधे गये मानो स्वजन समूह बंध गया, तुम बांधे गये मानो गजदन्त बांध दिया गया, तुम बांधे गये मानो तोरका महान् फलक बांध दिया गया, तुम बांधे गये मानो धान्यसे बोज बंध गया, तुम बांधे गये मानो पुण्यसे जीव बंध गया, तुम बांधे गये मानो सिरपर मणिबिलास बांध दिया गया, तुम बांध दिये गये मानो सुकथा विशेष निबद्ध कर दी गयो । खेलखेलमें जय और जयराजाने तुम्हें बांध लिया मानो रसवदीने (धातुवादीने ) रसको बांध लिया हो। दूसरोंको बात छोड़िए, हम लोगोंके लिए तुम सफल होगे। अन्यायसे दूषित व्यक्ति क्षयको प्राप्त होता है।" इस प्रकार कहकर उसके शरीरकी दीप्ति बढ़ाकर अर्ककोतिको अपने घरके लिए विसर्जित किया। धत्ता-घर जाकर लज्जा छोड़कर उसने अपना सिर ( पिताके) चरणयुगलपर रख दिया तथा शत्रुरूपी सिंहके लिए श्वापदके समान भरतका मुख किसी प्रकार बड़ी कठिनाईसे देखा ॥शा ___ लज्जित होते हुए भी पिताने उससे कहा कि “गर्भ गिर जाना अच्छा परन्तु ऐसा पुत्र न हो कि जो व्यसनोंमें रमता है, दुष्टोंके वचन सुनता है, अविवेकशील होता है और स्वजनोंको २-३०
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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