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________________ . सन्धि २७ अपने तेजसे चन्द्रमाको पराजित करनेवाले अच्यतेन्द्र के क्षयगे आलिगित अंग एकदम कान्तिहीन हो उठे। ___ अत्यन्त सौम्य स्वभाववाले और महाभयंकर चन्द्रमा और सुर्यरूपो चंचल बेल चल रहे हैं, पटीमाला (घटिका और समय ) से प्रायरूपी नीर कम हो रहा है, मैं कालरूपी रहटके आचरणसे कैसे बच सकता हूं। अपनी आयुको विगलित मानकर छह माह तक बीतगग भगवान्की समर्चा कर, श्रीसे युक्त और पापसे रहित उनके चरणकमल, जो भव्यके लिए भवका नाश होनेपर वित्त ( धन )के समान है। समय आनेपर अच्युत स्वर्गसे वह च्युत हुआ। कालो द्वारा किसको देह कवलित नहीं होती। इस अाबूतीपमें सुमेरुपूर्वतको दिशा दिलाससे दिय विदेहका क्या वर्णन करू ? उसमें सुन्दर उपवनोंकी कतारों और घरोंसे युक्त पुष्कलावती नामका देश है। अनेक रंगों की मणिशिलाओंसे विड़ित भूमिवालो पुण्डरिकिणो नामको नगरी है। उसका स्वामी इन्द्रमुकुटोंसे चाही गयी चरणधूलिवाला वज्रसेन नामका सूर्यको जीतनेवाला ग़जा है । अपनो मुखचन्द्रकी ज्योत्स्नासे दिगन्तको सफेद बना देनेवालो श्रीकान्ता नामकी उसकी पत्नी है। पापको व्याधिको नष्ट करनेवाला वह अच्युतेन्द्र उसका वचनाभि नामका पुत्र हुआ। पत्ता-स्वर्गसे आया वरदत्त भी उसका घालक हुआ बिजय नामका, मानो जैसे सुधाफा आलय चन्द्रमा ही उदित हुआ हो ॥५॥ बरसेन भी वैजयन्तमें हुआ, और चित्रांगद जयन्त नामसे उत्पन्न हुआ। प्रशान्तवदन भी देवलोकसे चयकर प्रफुल्लमुख अपराजित हुआ। 'ये शार्दूलादि (सिंहादि ) चारों सहायक भी युवराज वचनाभिके इस भाई हुए । अधो| वेयक विमानके वासको छोड़कर, मानव जन्ममें आकर १. सिंह - विजय, सुबर = वैजयन्त, नकुल = जयन्त, वानर - अपराजित, मतिबर मन्त्री = सुबाहु, बानन्द पुरोहित = महाबाह, अकम्पन सेनापति = पीठ, धनमित्र सेठ = महापोठ, श्रीमतीका जीव =धनदेव ।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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