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________________ भूमिका १९ वरमाला डालती हूँ। अर्ककोति शक्रमणसे उसे छीनना चाहता | मन्त्रीका समझाना आगमें धौका काम ) धर्ककीति जयकुमारसे पहलेसे ही चिड़ा हुआ था-वरण तो एक करता है। (णं पण सित्तड घुम बहाना पा । व्यर्ककीर्ति कहता हूँ : वारिण पतिहि ब अज्जू सयंवर माला-तुप्प सो दूसह पज्जलित वट्ट रिट लोहियसिस मोहट्टर 28-25 "जिस आगका पिताने प्रच्छन्न उक्तियोंसे निवारण किया था आज वह स्वयंवरकी मालारूपो पीसे मसरूपसे प्रज्वलित हो उठी है अब जित हो उठी है अब वह शत्रुके रक्तले रक्तसे सींची जानेपर ही शान्त होगी" । फिर क्या था ? सगरमेरि बज उठो, कलकल होने लगा । एक पलमें चतुरंग सेना दौड़ी प्रशिक्षित और सुरक्षित वीर योद्धा महागजों पर बैठ गये। महावतोंसे प्रेरित वे गरजते हुए महामेघकी तरह दौड़े। तीखे खुरोंसे घरीको लोदते हुए, उत्तम कामिनियोंके भनके समान चंचल घोड़े ला दिये गये । esोंके हिलते हुए वाडम्बरवाले दीप्ति और विचित्र छत्रोंसे आकाशको आच्छन्न करनेवाले, water पेट विषरोंके सिरोंको दूरदूर करनेवाले, तलवार, अस, सूसल, लकुटि और हल हाथों में लिये हुए बड़े-बड़े योद्धा युद्धके मैदान में पहुँचे। 23-24 लड़ते हुए प्रगलित व्रण रुधिरवाले सैम्य ऐसे मालूम पड़ते हैं मानो युद्धकी लक्ष्मीने दोनोंको टेके फूल बांध दिये हों । जुज्यंत बिट्टई विसरिसई पयक्रियणरुहरुल्ल for विष्णणं रणसिरिए वद्धई फेसु फुल्लई ॥ 28-26. हारते हुए अकीतिकी ओरसे सुनभि जयकुमारको ललकारता है तो वह उसका मुंह तोड़ उत्तर देता है "परस्त्रीके ( अपहरण के ) तुम प्रमुख कारक हो, अर्ककीति स्वयं कर्ता है। मैं न्यायनियुक्त हूँ और इस परोपर अपने स्वामीका भक्त हूँ" 28-3. तु कार परयारउपमुह अक्ककित्ति सई कल । हवं णामणिज घरणियले यि पढपायहं भराउ 1128-35. अन्तमें सोमप्रभके पुत्र जयकुमारने दुष्ट शत्रुओंको पीड़ा देनेवाले दृढ़ नागपाश चक्रवर्ती भर के प्रिय पुत्र को पकड़ लिया । निर्नामिकाकी गरीबी "कूरारितासेण वढणायवासेण परियो रूसारण चक्कवपि खणउ" 28-36. अपनी गरीबीका वर्णन करती हुई निर्मानिका कहती है । माठ भाई-बहन । पीतल के दो हृष्टे छाल वसन लपेटे हुए, स्फुट हाड़, रूखे बाल दूसरेको गाली-गलौज देते हुए कुल और चनोंका मुट्ठीभर आहार करनेवाले । कमरपर इस प्रकार हम दस स्वजन, आपस में लड़ते हुए और एक सफेद विरल लम्बे दाँत, दूसरोंका काम करनेवाले 11 22-15 बहुभाउ इंडई दो पियरई । कम खल चणय मुट्ठि महारई ॥ फरियल वैयि वक्कल वास । हड हट फुट्ट फरस सिर केसई ॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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