SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महापुराण "तंबई पोमराय रुह पोखर रस्ता कि राति ण णलाई पेण्ठिवितणि जाण संघाणई मुणिविकरति मयणसंपागाई करूवाहयामि अंतरि चुन कासु ण चल बप्प मणदुई" 22-7, श्रीमतीफे विवाहके अवसरपर वरवधूको आशीर्वाद देते हुए लोग कहते हैं जाव गंगाणई जाव मैरूगिरी ताम्ब भुजेह तुम्हे वि णिचं सिरी। होतु मुत्ता महंता पहाभासुरा जंतु बधिमण्णणेहेण वो वासरा ।। 24-13. जबतक गंगानदी और मुमेपर्यत है तबतक तुम भी मित्म श्रीका उपभोग करो। तुम्हारे महाप्रभाव पाली पुत्र हों, तुम्हारे विन अविछिन्न स्नेहसे बोते। इसके बाद कार्य दोनोंको सम्भोगतमालकान करत यथार्थवादको भी मात देनेवाला है। लेकिन उसे श्रीमती और धनबाहके समूचे जीवन (जो जस्म-जन्मान्तरों में भी व्याप्त है ) के सन्दर्भमें देखना चाहिए । श्रृंगारके इस प्रकार खुले वर्णनके कई कारण है । उनमें एक कारण यह है कि कवि नताना चाहता है, रागानुभूति जितनी तौर होगी, उसको प्रतिक्रिया भी उतनी ही तीच होगी। देवी सुलोचनाके रूपवित्रणमें कवि प्रश्नवाचक चित्र लगा देता है। जिसका अर्थ है कि उसका रूप सीमातीत है। कि तरुणीवयणह सबमिज्जाद । बासु सरिच्छन तं जि भणिज्जइ ।। 28-13. पुष्पदन्त को सबसे प्रिय प्रवृत्ति है नर-नारी रूपकी तुलना प्रकृतिसे करना। जयकुमार अपनी पत्नी सुलोचनाके साथ गंगा पार करते हुए उसके बीचमें पहुंचता है। वह गंगा, अपनी नववधू सुलोचनाका प्रतिबिम्ब देखता है। जसमें तैरता हुआ सारस-जडा देखकर देखता है प्रियाके स्तनकलश युगल । गंगाकी सुन्दर तरंगोंको देखकर प्रियाको विलितरंगको देखता है। गंगाके बादत भ्रमणको देखकर प्रियाके श्रेष्ठ माभिरमण को देखता है, गंगाके खिले कमलको देखकर प्रियाके मुखकमलको देखता है, गंगाके फैले हुए मत्स्यों को देखकर प्रिया के चंचल और दोघंतर नेत्रोंकी देखता है। गंगामें मोतियोंको पंक्तियोंको देखकर प्रियाकी दन्तपंकिको देखता है। गंगामें मतवाली भ्रमरमाला देखकर कान्ताकी नीली चोटी देखता है? 29-7, इस तुलनाका उद्देश्य यह बताना है कि सुलोचना कामकी नदी है। "णिय गहिणि बम्मबाहिणि देवि मुलोयण जेही मंदाइणि जणमुहदाइणि दीसइ राएं तेहो ।" 29-7. अपनी गृहिणो कामकी नदी देवी सुलोचना जैसी है जनोंको सुखदेनेवाली मंगानदी भी उसे वैसी दिखाई देती है। युद्धवर्णन माभय चरिउके इस उत्तरार्ष भागमे युद्धके प्रसंग भी कम है। प्रमुख उल्लेखनीय युद्ध भरतके पुत्र अर्कफोति और जयकुमारके बीच हुआ, वह भी सुलोचनाके स्वयंवरको लेकर । सुलोचना जयकुमारको
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy