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________________ ५ २३.८.६] हिन्दी अनुवाद आलिंगनका स्वाद करनेवाले रागीके लिए थण्डिल ( जन्तुरहित भूमि ) भी स्तनस्थल हैं । गिरिको गुफा या घर क्या करता है ? यदि वह पापपरिणाम नहीं करता। यह विचारकर मनोहरा जिनवरका ध्यान करती हई अपने भवन में रहने लगी। मानो उसने कठोर तप स्वीकार कर लिया और जन्मान्तरके पापोंको धो डाला । वह संन्यासिनी पंचगुरुका ध्यान कर स्वर्गमें ललितांग देव हुई। पत्ता- लक्ष्मीका भोग करता हुआ और भोगको तृष्णाकी व्याकुलतासे मरकर विभीषण राजा नरकके महाविलय में उत्पन्न हुआ, समयके साथ किसका अन्त नहीं होता ||६|| लक्ष्मी और सरस्वतीके सहवासके समान विधाताने उसे चूर-चूर करके फंक दिया । विनाशके हाथोके दांतोंसे ठेला गया वह सुखाधिप उखड़े हुए कल्पवृक्षके समान था। उसके शव को देखकर में दुखसे व्याकुल हो गया। शोकको ज्वालासे देहरूपो वृक्ष जल गया। हे चक्रपाणि, हे प्राणप्रिय, हे भाई, तुमने अबहेलना क्यों की ? मेरे अच्छे भाई दामोदर बोलो, हा! एक बार मुझे सान्त्वना दो, सुर-राजा-बेर-पृथ्वीपति और चक्रवर्ती क्या हे आदरणीय ! मरते हैं ? मैं मिथ्याभावसे ग्रस्त था। मैंने शवको कन्धेपर रख लिया। मैं उसे छूता हूँ। उसके साथ हंसता हूं। मैं कहता हूँ कि मुझे प्रत्युत्तर दो। मैं मतिमूल कुछ भी याद नहीं कर पाता और नगर-ग्राम-सीमा और अरण्यों में विचरण करता है। उस अवसर पर मौका दूत, मधुर बोलनेवाला ललितांगदेव आया। वह भयपूर्वक बेलको प्रेरित करता हुआ रास्तेमें स्थित हो गया। वह यन्त्रसे रेतको पेरता है। मैंने उससे कहा-अपनो शक्ति नष्ट मत करो क्या पानीसे नवनीत (लोणी ) निकलता है ? क्या दासीपुत्रीमें प्रेम हो सकता है? क्या बालूसे तेल निकल सकता है। यह सुनकर वह देव बोला-हे सुभट, यदि तुमने यह बात जान ली पत्ता-तो तुम यह बात क्यों नहीं जान पाते कि हे हलधर, तुम क्यों शोक मना रहे हो ? जो लोग मर चुके हैं, उन नरवरोंको क्या तुमने फिरसे जीवित होते हुए देखा है ? |७|| हे पुत्र ! तुम हाहाकार क्यों कर रहे हो, अपनेको धीरज देकर चलो। धीरके आधारको लेकर चलनेवाले वीर विशाल विश्वको गोपदके समान समझते हैं। भाई-भाई, क्या पुकारते हो? याद करो मैं तुम्हारी मां हूँ। तुम्हारे घरमें रहकर तप किया, उसीसे देवभवमें जन्मी। यह कहकर वह देव अपने घर चला गया, मैंने चक्रवर्तीका मुख देखा। सचमुष मैंने उसे निश्चेतन
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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