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________________ पुष्पावचय के समम उपस्थित हास्य रस के प्रसंग देखिए उदनशाखाकुसुमार्थमुद्भुजा ब्युदस्य पाष्णिद्वयमञ्चितोदरी । नितम्बभूस्रस्तदुकूलबन्धना नितम्बिनी कस्य चकार नोत्सवम् ॥४२॥ सर्ग १२ ऊँची डाली पर लगे फूल के लिए जिसने दोनों एड़ियां उठा अपनी मुजाएँ ऊपर की थी परन्तु बीच में ही पेट के पुलख जाने से जिसके नितम्बस्थल का बस्त्र खुलकर नदे पिः गया ॥ी त्यूछ--विनमाली स्नी मिसे मानन्दित नहीं किया था? उदयशाखाञ्चनपञ्चलाङ्गले जस्म मूले स्पति प्रिये छलात् । . स्मितं वधूनामिव वीक्ष्य सत्रपरमुच्चतात्मा कुसुमैर्द्धमानतः ॥५॥ -सर्ग १२ किसी स्त्रो ने ऊँची डाली को झुकाने के लिए अपनी पंचल अंगुलियोंवाली भुजा ऊपर उठायी ही थी कि पति ने छल से उसके बाहुमूल में गुदगुदा दिया। इस क्रिया से स्त्री को हंसी आ गयी और फूल टूटकर नीचे आ पड़े । उस समय वे फूल, ऐसे जान पड़ते थे मानो स्त्री की मुसकान देख लज्जित ही हो गये हों और इसीलिए आत्मघास की इच्छा से उन्होंने अपने आपको वृक्ष के अग्रभाग से नीचे गिरा दिया हो। प्रसंगोपात शिशुपालवध के भी दो श्लोक देखिएमृदृचरणतलाग्रदुःस्थितत्वाघसहतरा कुवकुम्भयोमरस्य । उपरि निरवलम्बनं प्रियस्य न्यपतदयोच्चतरोच्चिचीषयान्या ।।४।। उपरिजत रुजानि यात्रमानां कुशलतया परिरम्भलोलुपोऽन्यः । प्रथितपृथुपयोधरां गृहाण स्वयमिति मुत्रवधूमुदास दोभाम् ॥४९॥ -सर्ग ७ कोई एक स्त्री बहुत ऊँचाई पर लगे हुए फूल तोड़ना चाहती थी। उनके लिए यह अपने कोमल परों के पंजों के बल यद्यपि खड़ी तो हुई परन्तु स्तन-बालशों के भार को सहन सकने के कारण निराधार हो पति के ऊपर जा गिरी। कोई स्त्री पति से बार-बार याचना कर रही थी कि मुझे ये ऊपर की डाली में लगे फूल तोड़ दो। पति चतुराई के साथ उसका आलिंगन करना चाहता था इसलिए उसने उस स्थूलस्तना स्त्री को अपनी भुजाओं से उठाकर कहा- लो तुम्हीं तोड़ लो। इसके अतिरिक्त स्वयंवर के अनन्तर नगर के राजपथ में जाते हुए धर्मनाथ को देखने के लिए स्त्रियों को जिन चेष्टाओं का वर्णन कवि ने धर्मशर्माभ्युदय के १७वें सर्ग में किया है उसमें भी हास्य रस अच्छा विकसित हुआ। १. उपरिजत रुजाय वामहस्तेन काचिद विधृतसर भिशाखा सम्यास्ताप्तकाञ्ची। अमल कनकगौरी निर्गमन्नी विमन्धा नमगमखमनन्तं कस्य वा ४.इन तेने १५ -जीवन्दरचम्पू. लम्भ । २. काचिद रानी कनिकः पुरस्तादुदस्तभाशोः कुसुमाग्रतस्य । बुलं नरवाचितमशुझम तिरोदरे मछस करान्तरेण ||८||-जो, च, लम्भ ४ महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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