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________________ संशयालंकार का एक उदाहरण हारः किं वा सकलनयनाहार एवाम्बुजाक्ष्या गदा वक्षोरुहगिरिपतनिर्झरस्यैष पूरः । किं वा तस्याः स्तनमुकुलयोः कोमलश्रीमणामो मातिस्मैवं विषयवशतः स्त्रीजनैः प्रेक्ष्यमाणः ॥४३॥ पृ. १०५ श्लेष और व्यतिरेकालंकार की छटा देखिए 'कुवलयाहादसंदायकोऽपि निखिलममहीभृन्महितपादोपि भवानदोषकरतया न सुधाकरः, पद्मोल्लासनपटुरपि सन्मार्गाश्रितोऽपि सविरोधाभावेन म प्रभाकरः, सुमनोवृन्दवन्दितोऽपि मामृदनुकूलतया न पुरन्दरः, कुशाग्रनिकाशमतिरणि मौल्पविरहेण न सुरगुरु:'-पृ. १०० गुण संक्षेप में माधुर्य, ओज और प्रसाद मे तीन गुण माने गये हैं । गुण रस का धर्म होता है अतः रस के अनुसार ही इसमें गुणों का संकलन किया है । जहां शृगार मादि रसों का वर्णन है वहां माधुर्य गुण को प्रश्रय मिला है। जहाँ शान्त तथा हास्य आदि का अवसर है वहां प्रसाद गुण का वर्णन है और जहा वीर रस का ताण्डव है, वहाँ ओजगुण का प्रवाह प्रवाहित किया गया है। इस प्रकार प्रबन्ध की अपेशा इसमें समस्त गुणों का विकास हुआ है। माधुर्य गुण का एक दृष्टान्त मदनदुम-मन्जुमरीभिः स्फुटलावण्यपयोधिवीचिकाभिः । महितं वरवारकामिनीभिर्बहुसौन्दर्यतरङ्गिणीमरीभिः ॥२४॥ पृ. ६२ योज' गुण का उदाहरण वीर्यत्री प्रथमावतारसरणी सस्मिन्कुरूणां पतौ वाणान्मुञ्चति हस्तानतितधनुर्वल्लीसमारोपित्तान् । दोर्णक्षत्रभटच्छटाभिरभितः संभिद्यमानान्तर भास्वद्विम्बमहो बभार गगनश्रेणीमधुच्छात्रताम् ॥१०८॥ पृ. २०५ प्रसाद गुण का एक नमूना ममेयं महङ्गी मम तनय एष प्रचुरधी रिमे में पूर्वार्था इति विगतबुद्धिनरपणुः । अणुप्रख्ये सौख्ये विहितरुचिरारम्भवशगः ___ प्रयाति प्रायेण क्षितिधरनिभं दुःखमधिकम् ।।२७॥ पृ. २२४ साहित्यिक सुषमा
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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