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________________ खजाना और सेना से सहित होने पर भी ) उस रानी के पैर को देखकर भय से ही मानो जलरूपी किले को नहीं छोड़ा था । रूपक और उपमा का सम्मिश्रण अनिन्द्यदन्तद्युतिफेनिलाधर बालशा लिम्युरुलोचनोत्पले । लदास्यलावण्यसुधोदधौ बभूस्तरङ्गभङ्गा इव भङ्गुरालकाः ॥२-५९॥ उत्तम दाँतों की कान्ति से फेनयुक्त, अधररूपी प्रवाल से सुशोभित और नेत्ररूपी बड़े-बड़े नीलकमलों से भासमान उसके मुखसौन्दर्यरूपी अमृत के समुद्र के घुंघराले बाल लहरों की सन्तति के समान सुशोभित हो रहे थे । श्लेषोपमा स्वस्थो श्रुताच्छद्मगुरूपदेश: श्रीदानवाराविविराजमानः । यस्यां करोल्लासितवमुद्रः पौरो जनो जिष्णुरिवावभाति ||४- २३ ॥ जिस नगरी में नगरवासी लोग इन्द्र के समान शोभायमान हैं क्योंकि जिस प्रकार इन्द्र स्वस्थे है— स्वर्ग में स्थित है उसी प्रकार नगरवासी लोग भी स्वस्थ हैनीरोग हैं, जिस प्रकार इन्द्र छलरहित गुरु बृहस्पति के उपदेश को धारण करता है उसी प्रकार नगरवासी लोग भी छलरहित गुरुजनों के उपदेश को धारण करते हैं, जिस प्रकार इन्द्र श्रीदानवारातिविराजमान - लक्ष्मी - सम्पत उपेन्द्र से सुशोभित रहता है उसी प्रकार नगर निवासी लोग भी श्रीदानवारातिविराजमान - लक्ष्मी के दान जल से अत्यन्त सुशोभित हैं और इन्द्र जिस प्रकार करोल्लासितवञ्चमुद्र – हाथ में वस्त्रायुध को धारण करता है उसी प्रकार नगरनिवासी लोग भी करोल्लासितयज्ज्रमुद्र- किरणों से सुशोभित हीरे की अंगूटियों से सहित हैं । - और भी ● -- अभ्युपात्तकमलैः कवीश्वरैः संश्रुतं कुवलयप्रसाधनम् । द्रावितेन्दुरसराशिसोदरं सच्चरित्रमिव निर्मलं सरः ॥५-७० ।। तदनन्तर रानी सुनवा ने वह सरोवर देखा जो किसी सत्पुरुष के चरित्र के समान जान पड़ता था, क्योंकि जिस प्रकार सत्पुरुष का चरित्र मभ्युपात्तकमल --- लक्ष्मी प्राप्त करनेवाले कवीश्वर - बड़े-बड़े कवियों के द्वारा सेवित होता है उसी प्रकार वह सरोवर भी अभ्युपात्तकमल — कमलपुष्प प्राप्त करनेवाले कवीश्वर अच्छे-अच्छे जलपक्षियों से सेवित था । जिस प्रकार सत्पुरुष का चरित्र कुवलयप्रसाधन--महीमण्डल को अलंकृत करनेवाला होता है उसी प्रकार वह सरोवर भी कुवलयप्रसाधन — नीलकमलों से सुशोभित था और सत्पुरुष का चरित्र जिस प्रकार द्रावितेन्दु रस राशिसोदर - पिघले हुए चन्द्ररस C ९. स्व स्वर्गे तिष्ठतीति स्वस्थः खपरे शरि विसर्गली परे वा त्रयः' इति वार्तिकेत विसर्ग लोपः ॥ - सिमान्तकौमुदी साहित्यिक सुषमा पी
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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