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________________ वृद्धि के लिए जन्म धारण किया है, जो अत्यधिक नीरसपने को दूर कर रही हैं तथा जिसने पाप को नष्ट कर दिया है ऐसी सज्जनों की सभा भी मेरे पापसमूह को नष्ट करे । श्लेषव्यतिरेक अनेकपद्माप्सरसः समन्ताद्यस्मिन्नसंस्थात हिरण्यगर्भाः । जयन्ति त्रिदिव प्रदेशान् ।।१--४४॥ जीतते हैं, क्योंकि स्वर्ग के प्रदेशों में तो गाँवों में अनेक पद्मा नामक अप्सराएं है स्वर्ग के प्रदेशों में एक ही हिरण्य अनन्तगीताम्बरघा मरम्या ग्रामा जिस देश में गाँव स्वर्ग के प्रदेशों को एक ही पद्मा नामक अप्सरा है परन्तु उन ! पक्ष में, कमलों से उपलक्षित जल के सरोवर हैं गर्भ - ब्रह्मा हैं परन्तु वहाँ असंख्यात हैं ( पक्ष में असंख्यात - अपरिमित हिरण्यसुवर्ण उनके गर्भ - मध्य में हैं ) और स्वर्ग के प्रदेश एक ही पीताम्बर - - नारायण के घाम - तेज से मनोहर है परन्तु गाँव अनन्त पीताम्बरों के धाम से मनोहर हैं ( पक्ष में, अपरिमित गगनचुम्बी भवनों से सुशोभित है ) उत्प्रेक्षा संक्रान्तविम्बः सवदिन्दुकान्ते नृपालये प्राहरिकैः परीते । हृवाननश्रीः सुदृशां चकास्ति काराभृतो यत्र रुदन्निवेन्दुः ॥१-६३ ॥ जिसमें चन्द्रकान्तमणि से पानी झर रहा है है, ऐसे राजमहल में प्रतिबिम्बित चन्द्रमा ऐसा जान तथा जो पहरेदारों से घिरा हुआ पड़ता है मानो स्त्रियों के मुख की शोभा चुराने के कारण उसे जेल में डाल दिया हो और इसलिए मानो रो रहा हो । और भी— महाजिनो नोर्ध्वधुरा रथेन प्राकारमारो मनुं क्षमन्ते । freeयितुं दिनेशः श्रयत्वाची मयत्राप्युदीचीम् ॥१-८१ ५० 1 जिसकी धूरा बिलकुल ऊपर की ओर उठ रही है ऐसे रथ के द्वारा हमारे घोड़े इस प्राकार को लांघने में समर्थ नहीं है -- यह विचार कर ही गानो सूर्य उस रत्नपुरको लाँचने के लिए कभी तो दक्षिण की ओर जाता है और कभी उत्तर की ओर । और भी प्रयाणली लाजित राजहंसक विशुद्धपाणि विजिगी वत्स्थितम् । सर्दहिमालोक्य न कोशदण्डभाग्भियेव पद्मं जलदुर्गमत्यजत् 11२ - ३६ ।। अपने प्रयाण मात्र की लीला से बड़े-बड़े निर्दोष है ( पक्ष में, सुरक्षित सेना निर्दोष जिसने अपनी सुन्दर चाल से राजहंस पक्षी को जीत लिया है ( पक्ष में, जिसने राजाओं को जीत लिया है ), जिसकी एड़ी छलरहित है) तथा जो किसी विजयाभिलाषी राजा के समान स्थित है ऐसे कमल ने फुड्मल और दण्ड से युक्त होने पर भी ( पक्ष में, महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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