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________________ में आ हटौं। धर्मनाथ का विधिपूर्वक विवाह हुआ। उसी समय पिता का पत्र पाकर धर्मनाथ, कुबेरनिर्मित विमान के द्वारा सपत्नीक घर आ गये और सेना का सब भार सुषेण सेनापति के अधीन कर आये । रत्नपुर में धर्मनाथ का अभूतपूर्व सत्कार हुआ। इसी के मध्य उनके पिता महासेन महाराज, संसार से विरक्त हो गये। उन्होंने युवराज धर्मनाथ के लिए नोति का उपदेश देकर उनका राज्याभिषेक कराया और स्वयं वन में जाकर दीक्षा धारण कर ली । राजा धर्मनाथ ने अच्छी तरह राज्य का पालन किया । सुषेण सेनापति प्रतिरोधी राजकुमारों को परास्त कर सकुशल वापस आ गया । एक दूत ने अनेक राजाओं के साथ हुए युद्ध में सुषेण सेनापति की शूरता का कि जब मानाय । म किया तः वे सन्न हुए। दीर्घकाल तक राज्य करने के बाद एक दिन उल्कापात देख, धर्मनाथ का मन संसार से विरक्त हो गया। जिससे समस्त राज्य को तृण के समान छोड़कर वे वन में दीक्षित हो गये । केवलज्ञान प्राप्त होने पर इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने समवसरणधर्मसभा को रचना की। उसफे मध्य में सिंहासन पर अन्तरिक्ष में विराजमान हुए श्री धर्मनाथ भगवान का अष्टप्रातिहार्यरूप दिच्य ऐश्वर्य सबको आकृष्ट कर रहा था। भगवान् ने दिव्य ध्वनि के द्वारा जैन-सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। अन्त में सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त किया । जीवन्धर-परित का तुलनात्मक अध्ययन . गद्यचिन्तामणि, उत्तरपुराण तथा जीवन्धरचम्पू आदि के आधार पर जीवन्धरचरित का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है। __एक बार मगध सम्राट् राजा श्रेणिक भगवान् महावीर के समवसरण सम्बन्धी आनापि पारों वनों में घूम रहे थे। वहीं पर अशोक वृक्ष के नीचे जोवन्धर मुनिरान ध्यानारूढ़ थे। महाराज श्रेणिक उनके अनुपम सौन्दर्य तथा अतिशय प्रशान्त ध्यानमुद्रा से आकष्टचित्त हो उनका परिचय प्राप्त करने के लिए उत्सुक हो उठे । फलतः उन्होंने समवसरण के भीतर जाकर सुघर्माचार्य गणघरदेव से पूछा-"ये मुनिराज कौन हैं ? जान पड़ता है अभी हाल कर्मों का आय कर मुक्त हो जाने वाले हैं ।" इसके उत्तर में चार ज्ञान के धारक सुधर्माचार्य कहने लगे हे श्रेणिक ! इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र सम्बन्धी हेमांगद देश में राजपुर नगर सुशोभित है। इस नगर का राजा सत्यन्धर था और उसकी दूसरी विजय-लक्ष्मी के समान विजया नाम की रानी थी। राजा सत्यन्घर का काष्ठांगारिफ नाम का मन्त्री था और देवजन्य उपद्रवों को नष्ट करनेवाला सवदत्त नाम का पुरोहित था। एक दिन १. गवितामणि आदि में इस पुरोहित का कोई उल्लेख नहीं है। महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीला
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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