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________________ तावर्भकस्वभावेन सर्वमुष्णमिदं कथं भुजेऽहमिति रोदनवोन नयनकायुग. सञ्जातमकरम्हपूरकानुकारिणीभिरश्रुधाराभिर्नयनकमलपास्तव्यलक्ष्मीवक्षःस्थलस्थपुटिवमालामुक्ता इव किरन्तं भवन्तं समीक्ष्य भिक्षुरयं विश्वातिशायिमतिमहिममहितस्य भृशमपरोदननिदानस्यापि तत्र रोदनं धमिति चित्रमितीयते चित्तमित्यावभाषे । श्रुत्वा वाणी तस्य मन्दस्मितेन तन्वनिर्यक्षीरधारेति शङ्काम् । इत्थं बाचागाचचक्षे भवान्य मोचामाध्वीमाधुरीमादधानाम् ॥१४॥ श्लेष्मच्छेदो नयनयुगली निर्मलत्वं च नासा शिवाणानां भुवि निपतनं कोष्णता भोज्यवर्गे । शीर्षाबद्धभ्रमकरपयोदोषबाधानिवृत्तिरन्मेऽप्यस्मिन् परिचितगुणा रोदने संभवन्ति ॥ -जीवन्धरचम्पू, लम्भ २ क्षत्रचूडामणि की भूमिका में दोनों ग्रन्थों के उद्धरण देकार श्री टी. एस. कुप्पूस्त्रामी ने ग्रह सिद्ध किया है कि तामिल भाषा के जीवकचिन्तामणि के कर्ता तिस्तक्कदेव ने कथाभाग वादीभसिंह के ग्रन्थों-गद्यचिन्तामणि और क्षत्रचूडामणि से लिया है। गद्यचिन्तामणि के 'जीवन्धरप्रभयपुष्यपुराणयोगात्' इस सामान्य पद से उत्तरपुराण की स्पष्टता होती भी तो नहीं है । इलोक का सीधा अर्थ यह है कि जिस प्रकार फूलों की संगति के कारण लोग बन्धन में उपयुक्त होनेवाले निःसार तन्तुओं के मस्तक पर धारण करते है उसी प्रकार पतः मेरे वचन भी जीवन्धरस्वामी से उत्पन्न पवित्र पुराण के साथ सम्बन्ध रखते हैं-उसका वर्णन करते हैं अतः दोनों लोकों में हितप्रदान करनेवाले होंगे। इस परिप्रेक्ष्य में जीवन्धरचम्पू की कथा का श्राघार गद्यचिन्तामणि, क्षत्रचूडामणि तथा आंशिक रूप से उत्तरपुराण के निश्चित होने पर भी गद्यचिन्तामणि और क्षत्रचूडामणि का आधार स्तम्भ अन्वेषण की प्रतीक्षा करता है। आगे कुछ उद्धरण दिये जाते हैं जिनसे क्षषचूडामणि बोर जीवन्धरचम्पू का भाव-सादृश्य ही नहीं, शब्द-सादृश्य भी स्पष्ट प्रकट होता है-- ___ गद्यचिन्तामणि और क्षत्रचूडामणि वादीभसिंह सूरि की अमर रचनाएँ है । इनमें से क्षत्रचूडामणि में कथा का उपक्रम बतलाते हुए उन्होंने लिखा है कि सुधर्म गणधर ने राजा श्रेणिक के प्रति जो कथा कही थी वाही मैं कह रहा हूँ। यथा श्रेणिकप्रश्नमुद्दिश्य सुधर्मो गणनायकः । यथोबाच मयाप्येतदुच्यते मोक्षलिप्सया ॥३|| –क्षत्रचूडामणि, प्रथम लम्भ जीवन्धरचम्यू में भी यही कहा गया है या कथा भूतधानीशं श्रेणिक्र प्रतिणिता। . सुधर्मगणनायेन तां वक्तुं प्रयतामहे ॥१०॥ -जीवन्धर चम्पू, प्रथम लम्भ कथा
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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