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________________ प्राक्कथन मध्यप्रदेश के सागर-अंचल में जिन-विद्या का विशेष प्रगमन हुमा है। सुदूर प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र के वन-कुंजों में ऋषि-मुनियों ने तपःस्वाध्याय-निरत होकर ज्ञान-विज्ञान की वृद्धि के साथ ही साथ मे सर्मजन-मूलभ भी बनाया है। इस दिशा में प्राचार्य, ओ. पन्नालाल जैन का अनवरत प्रयास अनुत्तम है। उनकी हिन्दी और संस्कृत को बहुविध कृतियों से विद्वानों और जिज्ञासुओं को प्रेरणा मिली है। प्रस्तुत ग्रन्थ 'महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन' डॉ. जैन का शोष-नियन्ध है। इस प्रम्य पर सागर विश्वविद्यालय ने उन्हें पी-एच. डी. उपाधि से समलंकृत किया है। डॉ. जैन ने इसमें मानव व्यक्तित्व के विकास और सांस्कृतिक उपलब्धियों का सूक्ष्म दृष्टि से अनुसन्धान किया है। आशा है. आधुनिक युग के पारित्रिक निर्माण की दिशा का निर्धारण करते समय विचारकों और राष्ट्र-निर्माताओं को इसमें बहुमूल्य सामग्री मिलेगी। हम कामना करते है कि प्राचार्य जैन अपनी लेखनी से भारत-भारती को निरन्तर निर्भर करते रहें। रामजी उपाध्याय अध्यक्ष, संस्कृत विभाग सागर विश्वविद्यालय, सागर
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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