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________________ पुत्रं विहाय निजसन्ततिबीजमन्यो ___ न त्वस्ति मण्डनविधिः कुलपुत्रिकाणाम् ।।३।३३।। तेनोज्झितां निजकुलकविभूषणेन ___ सौभाग्य-सौख्य-विभवस्थिरकारणेन । मां शाननुवन्ति परितर्पयितुं विपुण्यां न शातयो न सुहृदो न पतिप्रसादाः ॥३॥३४॥ चन्द्रमा के द्वारा छोड़ी हुई घनथीथी-आकाश को सूर्य अलंकृत करने लगता है और हंस से रहित सरसी को कमलसमूह सुशोभित करने लगता है परन्तु निजसन्तति के दीजरूप पुत्र को छोड़कर कुलांगनाओं का दूसरा आभूषण नहीं है। निज फुल के एक-द्वितीय आभूषण, तथा सौभाग्य सुख और विभव के स्थिरकारणस्वरूप पुत्र से रहिस मुहा अभागिनी को सन्तुष्ट करने के लिए न जाति के लोग, न मित्रगण और न पति के प्रसाद ही समर्थ हैं। ___ कादम्बरी में इस दुख का विस्तार अद्यपि राजा के मुख से हुआ है तथापि उसका प्रारम्भ रानी के द्वारा ही किया गया है। रघुवंश तथा धर्मशर्माभ्युदय में पुरुषमुख से इसका वर्णन किया गया है । स्वप्नदर्शन तीर्थकर की माता, तीर्थकर पुत्र के गर्भावतार के पूर्व निम्नलिखित १६ स्वप्न देखती है १. ऐरावत हाथो, २. बैल, ३. सिंह, ४. लक्ष्मी का अभिषेक, ५. मालायुगल, ६. चन्द्रमण्डल, ७. सूर्यबिम्ब ८, मीनयुगल ९. कुम्भयुग, १., सरोवर, ११. समुद्र, १२. सिंहासन, १३, विमान, १४, नागेन्द्रभवन, १५. रत्नराशि और १६. निघूम अग्नि । स्वप्न-विज्ञान में संक्षेपतः स्वप्न तीन प्रकार के बतलाये हैं-संस्कारज, दोषज और अदृष्टज | दिन-भर के संस्कारों से जो स्वप्न आते हैं उन्हें संस्कारज कहते हैं। वात, पित्त और कफ में शोष उत्पन्न होने से जो स्वप्न आते हैं उन्हें दोषज स्वप्न कहते है और शुभ-अशुभ फल को सूचित करनेवाले जो स्वप्न आते है उन्हें अदृष्टज स्वप्न कहते है। संस्कारज और दोषज स्वप्नों का कोई फल नहीं होता और उनके दिखने का कोई समय भी निश्चित नहीं है परन्तु अदृष्टज स्वप्न शुभ-अशुभ फल की सूचना देते हैं और ये स्वप्न रात्रि के पिछले भाग में आते हैं। तीर्थकर धर्मनाथ की माता सुव्रता ने भी रात्रि के पिछले प्रहर में उपर्युक्त सोलह स्वप्न देखे हैं । इन स्वप्नों का वर्णन धर्मश म्युदय के पंचम सर्ग में अलंकारपूर्ण भाषा के द्वारा किया गया है। स्वप्नदर्शन के पश्चात् सुयता रानी प्रभातकाल में आभू. षणादि से सुसज्जित हो पति--राजा महासन के समीप जाफर समस्त स्वप्न सुनावी है । स्वप्न-विज्ञान के विद्वान् राजा महासेन उसे स्वप्नों का फल बतलाते हुए कहते हैं१८२ महाकवि हरिचन्द्र शुक अनुशीलम
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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