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________________ हे देवि ! इधर यह पूर्वदिशारूपो स्त्री सम्ध्याल्पी लाल साड़ी पहनकर नक्षत्ररूपी अक्षतों से सहित आकाशरूपी उत्तम पात्र में सूर्मरूपी मणिमय दीपक और सूर्य के घोडेपी हरी-हरी दूर्वा को संशोकर तेरा बहुत भारी मंगलाचार कर रही है आरती उतार रही है। हे देवि ! यह भ्रमरों की पंक्ति तुम्हारे केशपाश का सौन्दर्य पुराने में बहत चतुर थी, इसलिए रात्रि के समय राजा ने ( पक्ष में, चन्द्रमा ने ) इसे शीघ्र ही. कमलों के बन्धन में फंद कर दिया था, अब प्रातःकाल होने पर इसे छोड़ा है इसलिए हर्षित होकर मनोहर शब्दों के द्वारा तुम्हारी स्तुति कर रही है सो स्वीकृत करो। . जीवन्धरचम्पू के इस प्रयोष-गीत का अनुसरण पुरुदेवचम्प में भी किया गया है। उसके फर्ता अईदासजी ने महादेवी मरुदेवी के प्रबोध-गीत में लिखा है अरुणाम्बरं दधाना सन्च्यारमणी विनिद्रपद्ममुखी । देबि 1 तब पादसेवा कर्तुमिवायाति कमललोलाक्षी ॥२३॥ लक्ष्म्पाः समस्तवसुवृश्चिपुषो निवासो यज तथा वसुमतो वसुभिः परीतम् । देवि ! त्वदीयमुखराजविरोषहेतो र्नीलालके नवसुमस्वमहो वधाति ॥२४॥ तवाननाम्भोजविरोधिनी द्वा वजस्तथान्नं च पुमांस्तु तत्र । त्वया जितोस्ताचल-दुर्गमाप त्यक्तं पुनः क्लीयमुपैति मोवम् ।।२५॥-वसुर्थ स्तवक इनका भाव यह है हे देवि ! जो लाल अम्बर-आवाश ( पक्ष में, बस्त्र धारण कर रही है, खिले हुए कमल ही जिसका मुख है तथा कमल हो जिसके चंचल नेत्र है ऐसी सन्ध्यारूपी स्त्री तुम्हारे चरणों की सेवा करने के लिए ही मानो आ रही है । हे देवि ! जो भब्ज--कमल, समस्त लोगों के धन की वृद्धि को पुष्ट करनेवाली लक्ष्मी का यद्यपि निवास है, और असुमान्–धनवान् मनुष्यों के वशु--धन से यद्यपि परिन्यास है ( पक्ष में, सूर्य की किरणों से व्याप्त है ) तथापि तुम्हारे मुखरूपी राजा ( पक्ष में, पन्द्रमा) से विरोध होने के कारण श्यामल अलवों में वसुमत्त्व-धनवत्ता को धारण नहीं करता यह आश्चर्य है ( पक्ष में, नवसुमत्वं-नूतन पुष्पपने को धारण करता है ) । है देवि ! तुम्हारे मुखकमल के विरोधी अब्ज ( चन्द्रमा) और अब्ज ( कमल ), दो है इनमें जो पुरुष है ( पुलिग है ) ऐसा अञ्ज--चन्द्रमा तो पराजित होकर अस्ताचल के धन को चला गया पर जिसे नपुंसक समझकर छोड़ दिया था ऐसा अन्न ( कमल) प्रमोद को प्राप्त हो रहा है। प्रकीर्णक निर्देषा १७३
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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