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________________ उस समय लाल-लाल सूर्य समुद्र के जल में विलीन होता हुआ ऐसा जान पड़ता था मानो विषातारूपी स्वर्णकार ने फिर से संसार का भाभूषण बनाने के लिए उज्ज्वल सुवर्ण की तरह सूर्य का गोला तपाया हो और किरमान ( पक्ष में, हस्ताय ) रूप सँड़सी से पकड़कर उसे समुद्र के जल में डाल दिया हो । आकाश मे सूर्य को नीचे क्यों गिरा दिया ? इसका उत्तर कवि की वाणी में देखिए-- तां पूर्वगोत्रस्थितिमप्यपास्य यद्वारुणीं नोचरतः सिषेवे । स्वसंनिधानावपसार्यते स्म महोयसा सेन बिहायसाकः ॥४॥ यतः सूर्य, पूर्वगोत्र--उदयाचल की स्थिति को { पक्ष में, अपने वंशा की पूर्व परम्परा को ) छोड़ नीचे स्थानों में आसक्त हो ( पक्ष में, नीख मनुष्यों की संगति में पड़, वारुणी-पश्चिम दिशा ( पक्ष में, मदिरा ) का सेवन करने लगा था अतः महान् ( पक्ष में, उच्चकुलीन ) आकाश ने उसे अपने सम्पर्क से हटा दिया था । सूर्य लाल क्यों हो गया इसका हेतु अब महाकवि माघ को वाणी में भी देखिए नवकुङ्कभारुणपयोधरमा स्थकरावसक्तरुचिराबरया । अतिसक्तिमेश्य वरुणस्य दिशा भुशमन्वरमदसुपारकरः ॥७॥ --शिशुपालवध, समं । जिसके पयोधर--मेघ ( पक्ष में, स्तन ) नवीन केशर के लेप से लाल-लाल थे, __तथा जो अपने करों-किरणों से सुन्दर अम्बर--आकाश को धारण कर रही थी ( पक्ष में, अपने हाथ से वस्त्र को पकाहे हए थी) ऐसी वरूण की दिशा--पश्चिम दिशाभी स्त्री की अति निकटता को पाकर ही मानो सूर्य अत्यन्त अनुरक्त-राग से युक्त ( पक्ष में, लाल ) हो गया था। यहाँ पयोधर, कर और अम्बर के पलेष ने कवि की कल्पना को सजीव कर दिया है। सूर्यास्त हो गया, अन्धकार फैल गया और भाकाया में तारे चमकने लगे इस प्राकृतिक चित्र में कवि की सूलिका ने कैसा अद्भुत रंग भरा है ? यह देखिए अस्तं गते भास्वति जीवितेशे विकीर्णकशेव तमःसमूहैः ।। ताराश्रुविन्दुप्रकवियोगदुःखादिव छौ रुदती रराज ॥२४॥ -धर्मशर्मा,, सर्ग १४ उस समय ऐसा जान पड़ता पा कि आकाशरूपी स्त्री, सूर्यरूप पति के नष्ट हो जाने पर अन्धकार-समूह के बहाने केश विखेरकर तारारूप अश्रुबिन्दुओं के समूह से मानो रो हो रही हो। उदय के सम्मुख चन्द्रमा का वर्णन कितनी कवित्वपूर्ण भाषा में हुआ है ? यह देखिए महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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