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________________ समथिवा शिरः कुसुमच्छलादयमशोकतरोमदनानलः । पथि विषारिपेक्षत' सर्वतः समवधूतवधूतरसोऽध्वगान् ।।१३।। ऐसा जान पड़ता है कि लाल-लाल फूलों के बहाने कामाग्नि अशोक वृक्ष के ऊपर चढ़कर स्त्रियों के फोप का अनादर करनेवाले पथिकों को मार्ग में ही जला देने की इच्छा से मानो सब ओर देख रही थी। उचितमाप पलाश इति ध्वनि गुपिशाचपतिः कथमन्यथा। अजनि पुष्पपदाइलिताध्वगो नूगलजङ्गलजम्भरसोन्मुखः ॥१६॥ टेसू के वृक्ष ने 'पलाश' ( पक्ष में, मांस खानेवाला) यह उचित ही नाम प्रास किया है। यदि ऐसा न होता तो वह फूलों के बहाने पथिकों को नष्ट कर मनुष्यों के गले का मांस खाने में क्यों उत्सुकता से तत्पर होता ? ग्रीष्म ऋतु में छोटे तालाब सूख गये तथा उनकी मिट्टी फट गयो । क्यों फट गयी ? इसका कवि की भाषा में वर्णन देखिए इह तुषातुरमथिनमागतं विगलिताशमवेक्ष्य मुहुर्मुहुः । हृदयभूस्वपयेव भिदो गता गतरसा तरसा सरसी शुषौ ।।३।। ग्रीष्म ऋतु में निर्जल सरोवर की भूमि सुखकर फट गयी थी, जो ऐसी जान पड़ती थी मानी आगत तृषातुर मनुष्य को निराश देख लज्जा से उसका हृदय ही फट गया हो। वर्षा ऋतु में मंत्रों में विषम रही की, "हा र्णन देखिए जलधरेण पयः पिबताम्बुद्यधुंवमपीयत बाडपपावकः । कथमिहेतरथा तडिदास्यया रुचिररोधिररोचत बह्विजम् ॥३६॥ ऐसा जान पड़ता है कि समुद्र का बल पीते समय मेघ ने मानो घडवानल भी पी लिया था। यदि ऐसा न होता तो बिजली के नाम से अग्नि की सुन्दर ज्योति क्यों देदीप्यमान होती? इसी सन्दर्भ में हस्तिमल्स की उत्प्रेक्षा देखिए जो विक्रान्तकौरव के विद्याधरयुद्ध में साकार हुई है सौधामिन्य इमा विभान्ति शिखिनः पूर्व निगोशिशखा रोमन्यायितुमिच्छया मुहुरथोद्गीर्णा इवाम्भोधरैः । कि चान्तःकवलीकृतो जलधरैश्वानरो दुर्जरस्तत्क्रोडानि विपाट्य वाढमशनिश्छद्मा विनिर्गच्छति ।।७।। -विकान्तकौरव, चतुर्था ये बिजलियाँ ऐसी मान पड़ती है मानो मेघों के द्वारा पहले निगली हुई अग्नि की वे ज्वालाएँ हैं जिन्हें वे रोमन्थ की इच्छा से बार-बार बाहर निकालते हैं 1 अथवा मेघों ने पहले तो अग्नि को खा लिया परन्तु वह हजम नहीं हो सकी इसलिए बच के बहाने उन मेघों के मध्यभाग को फाड़कर अच्छी तरह बाहर निकल रही है । महाकधि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन ११६
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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