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________________ • जिस प्रकार इन्द्र सहस्राक्षता-हजार नेत्रों के अस्तित्व को धारण करता है उसी प्रकार यह पर्वत भी सहस्राक्षता-हजारों बहेड़े के वृक्षों के अस्तित्व को धारण करता है और जिस प्रकार इन्द्र महागहन भक्ति से-तीव्र भक्ति की अधिकता से मुकुलिताग्रमास्वत्कर-अपने देदीप्यमान हाथों को कमल को बोड़ी के आकार करके स्थित रहता है उसी प्रकार यह पर्वत भी महागहन भक्तिसे-अत्यन्त वन की रचना से मुकुलितानभास्वस्कर-सूर्य को अनकिरणों को सोचत करनेवाला है। यहाँ श्लेषानुप्राणित उपमा का रूप कितना निखरा हुआ है, यह दर्शनीय है । समासोक्ति का चमत्कार देखिए प्रकटितोरुपयोघरबन्धुराः सरसचन्दनसौरभशालिनीः । मदनबाणगपाङ्कितविग्रही गिरिरयं भजते सुभगास्तटीः ॥२२॥ जिस प्रकार मदनबाणगण कामबाणों के समूह से चिह्नित शरीरवाला मनुष्य, उठे हुए स्थूल स्तनों से सुन्दर एवं सरस बन्दन को सुगन्धि से सुशोभित सौभाग्यशाली स्त्रियों का मालिंगन करता है उसी प्रकार यह पर्वत भी यत: मदनबाणों-कामबाणों के समूह से ( पक्ष में, मेनार और बाणवृक्षों के समूह से ) चिह्नित था अतः उठे हुए विशाल पयोषरों-स्तनों ( पक्ष में मेघों) से सुन्दर एवं सरस चन्दन की सुगन्धि से सुशोभित मनोहर तटियों का आलिंगन कर रहा है। ___ यहां विशेषणसाम्य के कारण पर्वत में नायक और तटियों में नायिका का व्यवहार आरोपित किया गया है। ___ ग्रह वर्णन शिशुपाल-वध के निम्नांकित श्लोक से सुन्दर बन पड़ा है क्योंकि इसमें रैवतक गिरि की कामुकता को सूचित करनेवाला कोई विशेषण नहीं है जबकि धर्मशर्माभ्युदयकार ने विम्यगिरि की कामुकता को प्रकट करनेवाला 'मदनबाणगणाङ्कितविग्रहः' विशेषण दिया है। अयमतिजरठाः प्रकामगुर्वीरलघुविलम्बिपयोधरोपरुताः । सततमसुमलामगम्यरूपाः परिणतदिक्करिकास्तटीविति ॥२९॥-शिशु., सर्ग ४ कुछ यमक की छटा देखिए न व नवप्रेमबसा भ्रमती स्मरन्ती स्मरं तौद्रमासाद्य मः । क्षणादीक्षणादीश बाष्पं वमन्त्री दशां का दशाकामिहान्वेति न स्त्री ॥२१॥ हे नाथ ! यहां नये प्रेम से बंधी, शिखर पर घूमती, काम की तीन वाधावश पति का स्मरण करती तया नेत्रों से क्षण एक में अश्रु बहाती हुई कौन-सी स्त्री दशमीमृत्युदशा को प्राप्त नहीं होती ? मन्दाक्षमन्दा क्षणमत्र तावन्नव्यापि न स्यापि मनोभवेन । रामा वरा मावनिरन्यपुष्टवध्वा नवध्वानवशा न यावत् ॥३६॥ शोभासम्पन्न, लजोली, नबीन उत्कृष्ट स्त्री इस पर्वत पर कामदेव से सभी तक ज्यान नहीं होती जबतक वह कोयल के नवीन शब्द के अधीन नहीं हो पाती-कोयल १४२ महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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