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________________ हिलते हुए बड़े-बड़े ताई वृक्षों से ऐसा जान पड़ता था मानो मुजाएं उठाकर नृत्य को । लीला ही प्रकट कर रहा हो। धर्मशर्माभ्युदय में यह मुमेरुवर्णन सप्तम सर्ग के २० से लेकर ३७ श्लोक तक अभिव्याप्त है । इस वर्णन में कवि ने उपमा, रूपक, एमेष, समारोक्ति और उत्प्रेक्षा अलंकारों का अच्छा चमत्कार दिखलाया है। क्षीरसमुद्र जन्माभिषेक का जल लाने के लिए जब देवपंक्तियां क्षीरसमुद्र के तट पर पहुंची तब उसकी अवदात आभा और घेरकर खड़ी हुई हरी-भरी वृक्षावली को देख उनका मन प्रसन्न हो गया। सबकी दृष्टि समुद्र पर जा रुकी, उसी समय वचन-रचना में चतुर एक पालक नाम का हास्पप्रिय देव समुद्र की सुषमा का वर्णन करने लगा। पछ् वर्णन धर्मशर्माभ्युदय के अष्टम सर्गीय १२-२६ श्लोकों में पूर्ण हुआ है। मालिनी छन्द ने उसकी शोभा बढ़ायी है । उदाहरण के लिए कुछ पद्य देखिए अभिनवमणिमुक्ताशङ्खशुक्तिप्रवाल. प्रभृतिकमतिलोलदर्शयन्नूमिहस्तः । जडजठरतयक्षि व्याकुलो मुदतफच्छ: स्थविरणिगिवाने स्वगिभिः क्षौरसिन्धुः ।।१२।। देवों ने अपने आगे वह क्षीरसमुद्र देखा जो ठीक उस वृद्ध व्यापारी के समान जान पड़ता था जो कोपते हुए तरंग-रूप हाथों से नये-नये मणि, मोती, शंख, सीप तथा मूंगा आदि दिखला रहा था, स्थूल पेट होने से जो व्याकुल था ( पक्ष में जलयुक्त होने से पक्षियों द्वारा व्यास पा) और इसी कारण जिसकी कांच खुल गयी थी { पक्ष में, जिसका जल छलक-छलककर किनारे से बाहर जा रहा था अथवा किनारे पर जिसने कछुओं को छोड़ रखा था । उपचितमतिमात्र वाहिनीनां सहस्रः पृथुलहरिसमूहः कान्तदिक्वक्रवालम् । अकलुषतरवारिक्रोउमज्जन्महीनं नृपमिव विजिगोपुं मेनिरे ते पयोधिम् ॥१३॥ देवों ने उस समुद्र को विजयाभिलाषी राजा की तरह माना था। क्योंकि जिस प्रकार विजयाभिलाषी राजा हजारों बाहिनियों-सेनाओं से युक्त होता है उसी प्रकार यह समुद्र भी हजारों वाहिनियों-नदियों से युक्त था, जिस प्रकार विजयाभिलाषी राजा पृथुल-हरिसमूह-स्थूलकाय घोड़ों के द्वारा दिङ्मण्डल को व्याप्त करता है उसी प्रकार वह समुद्र भी पृथुलहरिसमूह-बड़ी-बड़ी लहरों के समूह से दिमण्डल को ज्यात कर रहा था और जिस प्रकार विजयाभिलाषी राजा अकलुषतरवारिकोडमजन्महीन-अपनी उज्वल तलवार के मध्य से अनेक राजाओं का खण्डन करनेवाला होता है उसी प्रकार वर्णन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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