________________
मुकुलों का कोमलमृणाल हैं ? इस प्रकार संशय के वशीभूत हो स्त्रीजनों के द्वारा देखा गया उसका हार बहुत ही सुशोभित है
"उसके नाक की मणि ऐसी जान पड़ती थी मानो मुखरूपी कमल के मध्य में सुशोभित पानी की बूंद ही हो अथवा नासारूपी वंश से गिरा हुआ श्रेष्ठ नूतन मोती ही हो ॥४४॥
* उसके स्तनों पर जो मकरी का चिह्न बना था वह निम्न प्रकार संशय उत्पन्न कर रहा था— क्या यह कामदेव सम्बन्धी मन्त्र के बीजाक्षरों को पंक्ति है ? क्या उसकी frieली है ? अथवा क्या स्तन रूपी कमलों पर मंठनेवाली भ्रमरों की पंक्ति ही है ॥ ४५ ॥
राजा
अलंकार - चिन्तामणि के अनुसार नृप - राजा में निम्नांकित गुणों का वर्णन किया
जाता है
नृपे यशः प्रतापाज्ञेऽसत्सन्निग्रहपालने ।
सन्धिविग्रहयाना दिशस्त्राभ्यासनयक्षमाः ॥ २५ ॥ अरिषड्वर्गजेतृत्वं धर्मरागो दयालुता ।
प्रजागो जिगीषुत्वं धर्मी दार्य भी रताः ॥ २६ ॥
अविरुद्ध त्रिवर्गत्वं सामादिविनियोजनम् ।
त्यागसत्य सदाशीचशी यैश्वर्योद्यमादयः ॥ २७॥ - प्रथम परिच्छेद
1
राजा में, यश, प्रताप, आज्ञा, दुष्ट निग्रह, सदनुग्रह, सन्धि विग्रह, युद्ध के लिए प्रस्थान, शस्त्राभ्यास, भय, क्षमा, काम, क्रोध आदि छह अन्तरंग शत्रुओं को जीतना, धर्मराग, दयालुता, प्रजा के साथ स्नेह, बीत की इच्छा न होना, धीरता, उदारता, गम्भीरता, त्रिवर्गका निर्विरोध पालन करना, साम-दान, वण्ड आदि उपायोंका प्रयोग करना, त्याग, सत्य, सदा निर्लोभ रहना, शूरता, ऐश्वयं और उद्यम आदि गुणों का वर्णन होता है ।
धर्मशर्माभ्युदय में राजवर्णन का प्रसंग द्वितीय सर्ग ( १-३४ ) और चतुर्थ सर्ग ( २६-४० ) में आया है। दोनों ही स्थानों पर कविवर हरिचन्द्र ने अलंकारचिन्तामणि में प्रदर्शित गुणों का अच्छा समावेश किया है । उदाहरण के लिए राजा महासेन की शूरता का वर्णन देखिए । यहाँ शूरता के साथ सुरूपता का भी श्लेष द्वारा सुन्दर अंकन
हुआ है-
१. नासामणिर्वस्वपोजमध्यविभा
१३२
में जलविन्दुरेव ।
होस्विदस्मानमौक्तिकं किं नासाख्यवंशाद गलित गरिष्ठम् ||४
२. कि कामम प्रीजालि किं वा तहविरुदावतिः । किंचिरकुचाजशास्तिर्मकरी संशयं धात् ॥४५॥
महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन