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________________ अब स्तन-वर्णन में कवि की कला देखिए-- यद्वय॑ते निवृतिधाम पन्यधं बं तदस्याः स्तनयुग्ममेव । नो चेत्कुतस्त्यक्तकलापता युक्ता गुणैरत्र वसन्ति मुक्ताः ।।१७.२२।। घन्य पुरुषों के द्वारा जिस मुक्तिधाम का वर्णन किया जाता है निष्षय से बाह इसका स्तनयुगल ही है। यदि ऐसा न होता तो यहाँ कलंकरूपी पाप से रहित और सम्पग्दर्शनादि गुणों से (पक्ष में तन्तुओं से युक्त मुक्त-सिद्ध परमेष्टी (पक्ष में मुक्ताफल) क्यों निवास करते ? जोबम्परचम्पू में नारी-सौन्दर्य का वर्णन यह पहले कहा जा चुका है कि नारी, कवि की कलम, चित्रकार की तुलिका और शिल्पकार की छैनी का लक्ष्य युग-युग से होती आ रही है। महाकवि हरिचन्द्र ने जीवघरपम्पू में भी नारी को अपनी कलम का लक्ष्य कितने हो स्थलों पर बनाया है पर उसके सर्वाधिक सौन्दर्य का वर्णन उन्होंने तृतीय लम्भ में गन्धर्वदत्ता के सौन्दर्य अंकन में किया है । देखिए, पाणिग्रहण के अनन्तर गम्धर्ववत्ता का चित्रण कितना मनोहारी हुआ है अपने कान्तिपूर की तरंगों के मध्य में स्तनरूपी तुम्बीफल के सहारे सैरती हुई उस नवयुवती को देखकर जीवधरकुमार बहुत भारी आश्चर्य के साथ आनन्दित हुए ।।५।। ___ यतश्च कमल-युगल ने अनेक प्रकार से तप में स्थिर रहकर पुण्य-संचय किमा था इसलिए फलस्वरूप उसके दोनों चरण बन सके थे, यदि ऐसा न होता तो दोनों चरण हंसी ( पक्ष में तोडर) का आश्रय लेकर हृदयहारी-मनोहर शब्द कैसे करते ? ॥५१॥ पर की किरणों से जिनका अपमाग लाल हो रहा है ऐसे उसके नख इस प्रकार सुशोभित हो रहे थे मानो माप स्त्रियों को मुख देखने के लिए विधाता के द्वारा बनाये हए अतिशय निर्मल मणिमय दर्पण ही हों ॥५२।। इसके कुछ-कुछ लाल नखों ने कुरषक पुष्प को कान्ति जीत ली यो और चरणकमल की कान्ति मे अशोक वृक्ष का पत्रुव जीत लिया था ॥५३॥ मैं गन्धर्वदत्ता के जंघायुगल को कामदेव के तरकस का युगल समझता हूँ अथवा कामदेव के बाणों को तीक्ष्ण करने के लिए वनिर्मित मसाण मानता हूँ ॥५४॥ तपाये हुए सुवर्ण के समान सुन्दर रूप को धारण करनेवाले उसके दोनों कर ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानो स्वनरूपी गुम्बजों से सुशोभित उसके शरीररूपी १. पृ. ७०, श्लोक ५० से पृष्टभ, रलोक ह तक | २. सरोजयुग्म बहुधातस्थित बभूव तस्यापरणद्वये पम् । न चेस कथ' तत्र व साविमो समेस्स हा तनृता फलस्वनम् ॥ वर्णन १२७
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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