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________________ 'उस नगरी के हरे-भरे मणियों से निर्मित मकानों को कान्ति से व्याप्त होकर पर मेघों के समूह हरे-मरे दिखने लगते हैं तब सूर्य के रक के घोड़े उन मेशों को पूर्वा और पानी समझफर उनकी ओर झपटते हैं और यतः सूर्य घोड़ों की इस प्रवृत्ति को सहने में असमर्थ है इसलिए ही उसने क्या उत्तरायण और दक्षिणायन के भेद से अपने दो मार्ग बना लिये हैं ॥१५॥ 'स नगरी की सुन्दरी स्त्रियों के मुख-सपी चन्द्रमा से पिघले हए, चनकान्तमणिनिर्मित महलों से जो पानी भरता है उसे पीने की इच्छा से चन्द्रमा का मग बड़े वेग से भाया परन्तु ज्या हो उसन महकों के शिखर पर धर सिंह देखे स्यों हो भयभीत हो बड़े बेग से बाहर निकल गया ॥१६॥' 'उस नगरी के अतिशय श्रेष्ठ राजमहलों की देहलियों में जो गरुड़ मणि लगे हुए हैं उनसे मृगों के समूह पहले कई बार छकाये जा चुके है इसलिए अब वे कोमल तृणों को देखकर छूते भी नहीं हैं किन्तु जब वे तृण स्त्रियों को मन्द मुसकान से सफेद हो जाते हैं, तब चर लेते हैं ॥१७॥ 'उस नगरी के ऊंचे-ऊंचे महलों की छतों पर बैठनेवाली स्त्रियों के नेत्ररूपी नील कमलों की काली कान्ति ऐसी जान पड़ती है मानो अपनी सखी गंगा नदी को देखने के लिए यमुना नदी ही बड़ी शीघ्रता से स्वर्ग की ओर बढ़ी जा रही हो ॥१८॥' ___'उस नगरी के मकानों की छतों पर देवांगनाओं के प्रतिविम्ब पड़ रहे थे और वहीं पर तरुणजनों को निज की स्त्रियां बैठी थीं । यद्यपि दोनों का रूप-रंग एक-सा था तथापि तरुणजन नेत्रों की टिमकार की कुशलता से उन शोनों को अलग-अलग जान लेते हैं। इसी प्रकार वहाँ के नीलमणि निर्मित महलों के अग्रभाग में स्थित किन्हीं सुन्दरियों के मुखचन्द्र को तथा पास ही में विचरनेवाले चन्द्रमा के विम्ब को देखकर १, यस्था हरिमणिमयाखयकातिजाले ___ यन्तेि बलाहककुलैऽपि सहसरश्मिः । दूर्वाम्नु बुदिपससारमरथाश्मरोध - ____ क्लेशासहः किमकरोगमनेऽस्यने ॥१५॥ २. मरमुन्दरोवदनवित्तीमचन्द्र कान्तारमसौधगलिर सलिलं पिपानुः । एणाङ्करहरतिवेगवशास्समेश्य • भौती रयन निरयार तसौधसिहास् ॥१६॥ +. पस्यामनर्यपमन्दिरदेहलीषु ___पाश्मतै मनगला मा बसिचताः प्राक् । राष्टवापि कोमलतृणानि न संस्पृशन्ति । स्त्रीमन्यहास धवलानि चरन्ति तानि १५ ४. उपमहापतिमाणिताना, सत्राङ्गनाना नयनोत्पलश्रीः । गर्दा सस्ती स्मामवलोकित द्राक् स्वर्गगता सूर्यमृतेव भाति ११८५ वर्णन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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