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________________ से प्रज्वलित अग्नि के द्वारा सम्तापित जल से युक्त बटलोई में खरा व्यभिधार है क्योंकि भूतपतुष्टय के रहते हुए भी उसमें चेतन उत्पन्न नहीं होता और गुड़ आदि के सम्बन्ध से होनेवाली जिस अचेतन उन्मादिनी शक्ति का तुमने उदाहरण दिया है वह चेतन के विषय में उदाहरण कैसे हो सकती है ? इस प्रकार यह जीव अमूतिक, निर्वाष, कर्ता, भोक्ता, चेतन और कथंचित् एक है तथा विपरीत स्वरूपवाले शरीर से पृथक ही है। जिस प्रकार अग्नि की शिक्षाओं का समूह स्वभाव से ऊपर को जाता है परन्तु प्रचण्ड पवन उसे हठात् इथर-उघर ले जाता है उसी प्रकार यह जीव स्वभाव से ऊर्ध्वगति है. ऊपर हो जाता ह-परसु पुरातन फर्म इस हात समयमा में अनेक गतियों में ले जाता है। इसलिए मैं आत्मा के इस कर्म-कलंक को तपश्चरन के द्वारा शीघ्र ही नष्ट करूँगा क्योंकि अमूल्य मणि पर कारणवश लगे हुए पंक को जल से कौन नहीं हो डालता ? ( श्लोक ६७-७५ ) ११८ महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन
SR No.090271
Book TitleMahakavi Harichandra Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Sahityacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages221
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size4 MB
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