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प्रकृति-निरूपण
तृतीय स्तम्भ में प्रकृति-निरूपण की चर्चा की गयी है । ऋतुचक्र
धर्मशर्माभ्युदय के ११वें सर्ग में द्रुतविलम्बित छन्द के द्वारा वसन्त आदि छह ऋतुओं का बड़ा सुन्दर वर्णन हुषा है। नार्म साल में feem एक पल का है मन को लुभा लेता है। जीवन्धरचम्पू के चतुर्थ प्लम्भ में आया हुया वसन्त ऋतु का वर्णन भी अपने आपमें परिपूर्ण है । तपोवन
तीर्थयात्रा के प्रसंग में जीवन्धर स्वामी ने तपोवन में विश्राम किया है । इस प्रसंग में तपोवन में पाये जानेवाले विविध अंगों का वर्णन कवि ने अपनी स्वाभाविक वाग्धारा में किया है। यहां अलंकार की विच्छित्ति नहीं है किन्तु परमार्थ का प्रशान्त वर्णन है । जटाधारी साधु, वन्य पशुओं का निर्भय विचरण और मुनि बालिकाओं की सदयवृत्ति को देखकर मोही मानव' एक बार कुछ विचार करने के लिए उद्यत हो
जीवन्धरचम्पू का प्रकृति-वर्णन .
जीवन्धरचम्पू के प्रकृति-वर्णन ने भवभूति के प्रकृति-वर्णन को निष्प्रभ-सा कर दिया है । जीवन्धर स्वामी ने घनघोर अरवियों में एकाकी भ्रमण किया है । वहां उन्होंने दावानल में रुके हुए हाथियों के झुण्ड देखे हैं। गरजते और बरसते हुए मेत्र देखे है। कल-कल करते हुए पहाड़ी निर्झर और रंग-बिरंगे फूलों से सुशोभित वन की वसुन्धरा को भी देखा है।
सूर्यास्तमन आदि का वर्णन
थर्मश म्युदय में सूर्यास्त, तिमिर-प्रसार और चन्द्रोदय आदि का वर्णन कवि ने जिस अलंकारपूर्ण भाषा में किया है उसे देख सहृदय पाठक का हृदय बाँसों उछलने लगता है। इस सन्दर्भ में अनेक पद्य उद्धृत कर कवि को प्रतिभा का दिग्दर्शन कराया गया है। प्रभात-वर्णन - संस्कृत साहित्य में शिशुपाल का प्रभात-वर्णन प्रसिद्ध है पर जब हम धर्मशर्माभ्युदय के प्रभात-वर्णन को देखते हैं तब वह निष्प्रभ दिखाई देने लगता है। शिशुपाल में यत्र-तत्र अश्लीलता के भी दर्शन होते है पर धर्मशर्माभ्युदय में शालीनता का पूर्ण ध्यान रखा गया है।
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