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१२. जीवन्वरषट्पदी-कोटीश्वर के द्वारा लिखित १० अध्यायात्मक ११८
. श्लोकों का एक ग्रन्थ १३. जीवन्धरचरिते-ब्रह्मकवि द्वारा विरचित एक ग्रन्थ हिन्दी में १४. जीवन्धरचरित-कवि नथमल द्वारा रचित हिन्दी पद्म-काम्य
उपजीव्य और उपजीवित प्रत्येक कवि अपने पूर्ववर्ती कवियों की कुतियों से प्रेरणा ग्रहण करता है और अपने परवर्ती कवियों पर अपना प्रभाव छोड़ता है। महाकवि हरिचन्द्र के विषय में भी हम इस तथ्य को स्वीकृत करते हैं। महाकवि कालिदास तथा माघ आदि से हरिचन्द्र ने पर्याप्त प्रेरणाएं प्राप्त को है तथा श्रीहर्ष, अर्हदास, और हस्तिमल्ल आदि पर अपना पुष्कल प्रभाव छोड़ा है । रघुवंश के छठे सर्ग में कालिदास ने इन्दुमती के स्वयंवर का वर्णन किया है और हरिचन्द्र ने भी धर्मशर्माभ्युदय के सत्रहवें सर्ग में श्रृंगारवती के स्वयंवर का वर्णन किया है। दोनों ही वर्णनों का तुलनात्मक अध्ययन करने से उपर्युक्त बात का समर्थन होता है।
कालिदास ने लिखा है कि स्वयंवर-सभा में अज को देख अन्य राजा इन्दुमती के विषय में निराश हो गये
रतेहीतानुनयेन कामं प्रत्यक्तिस्वाङ्गमिवेश्वरेण । काकुत्स्थमालोकयतां नृपाणां मनो बभूवेन्दुमतीनिराशम् ॥६-२॥ रघुवंश
रति की प्रार्थना को स्वीकृत करनेवाले ईश्वर-शिव के द्वारा जिसका अपना शरीर वापस कर दिया गया था ऐसे कामदेव के समान अज को देखनेवाले राजाओं का मन इन्दुमती के विषय में निराश हो गया था।
हरिचन्द्र ने भी धर्मनाथ की लोकोत्तर सुन्दरता को देखकर अन्य राजाओं के मुख को निष्प्रभ बताया है
निःसीमरूपातिदायो ददर्श प्रदह्यमानागुरुधूपवा। मुखं न केषामिछ् पार्थिवाना लज्जामषीकूचिकयेक कृष्णम् ।।१७-५।।
--धर्मशर्माभ्युदय . अत्यधिक रूप के अतिशय से युक्त प्रीधर्मनाथ स्वामी ने जलती हुई अगुरुधूप को वत्तियों से किस राजा का मुख लज्जा-रूपी स्याही की कूची से ही मानो कृष्णीकृत नहीं देखा था--भगवान् के अद्भुत प्रभाव को देखकर समस्त राजाओं के मुख श्याम पड़ गये थे।
महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशोलन