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________________ स्मक प्रवृत्ति और सरलीकरण का उद्घोष है। शोधाथियों को इस प्रोर प्रेरित होना चाहिए। इसलिए जब हिन्दी संज्ञा के अन्तर्गत उसका भाषिक या साहित्यिक अध्ययन किया जाता है । विशेषतः लगभग संवत् १६२५ तक ) तो अध्येता के लिए यह बताना परमावश्यक हो जाता है कि वह इसके अन्तर्गत किस भाषा का (राजस्थानी, प्रज, अवधी या मिश्रित भादि का) अध्ययन प्रस्तुत कर रहा है । यदि कोई अध्येता हिन्दी नाम के अन्तर्गत उसके प्राभोग में आने वाली किसी भाषा-विशेष का उल्लेख न करके, सामान्य रूप से एक भाषा मा उसके साहित्य का ही अध्ययन प्रस्तुत करता है, तो वह हिन्दी नाम की सार्थकता कदापि सिद्ध नहीं करता । यह केवल प्रध्ये ता का अपना और सुविधावादी दृष्टिकोण हो है। दुर्भाग्य से हिन्दी में आजकल ऐसे अध्ययन ही प्रतिक हो रहे हैं, जो अनेक भ्रान्तियों को जन्म देते हैं। उपयुक्त कथन से यह सिद्ध है कि हिन्दी का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक और उसकी- अर्थात् उसकी विभिन्न बोलियों को प्रयोग में लाने वालों की संख्या देश की लगभग एक तिहाई जनसंख्या के बराबर है। इतने बड़े प्रदेश में हिन्दी की विभिन्न बोलियों में रचे गए साहित्य का,अभी तक प्राकलन और संचयन भी भली प्रकार नहीं हो सका है, पौर जब कोई भी साहित्यिक महत्व की कृति या प्रच्छा कवि जब कभी प्रकाश में प्रासा है तो हिन्दी साहित्य की परम्परा में या तो वह एक नई कड़ी जोड़ता है अथवा क्षीण ही सही, किसी नई परम्परा की सूचना देता है । अनेक कारणों से बड़े क्षेत्र विशेष में लोक भावना के अनुसार, कतिपय नवीन साहित्यिक पम्पराए प्रारम्भ हो जाती हैं। इसके विशिष्ट कारण पारम्परिक, भौगोलिक, राजनैतिक और सामाजिक होते हैं । यद्यपि सास्कृतिक स्रोत प्रायः सबका समान ही रहता है तथापि इन कारणों से लोक में विभिन्न परम्परा या परम्परात्रों का विकास और प्रसार हो जाता है। जैसे भाषा विशेष की अपनी प्रकृति होती है वैसे ही इन साहित्यिक परम्परायों की भी अपनी विशेषताएं होती हैं, जिन्हें भाषा विशेष की साहित्यिक जातीय परम्पराए कह सकते हैं। उदाहरणार्थ, ब्रज भाषा की प्रकृति की मुख्य बातें ये कही जा सकती हैं-मुक्तक, सवैया, मनहरण, योर दोहा छन्द, शृंगार प्रेम तथा राधा-गोपी-कृष्ण विषयक रचनाओं का बाहुल्य, हृदय की कोमल मनोवृत्तियों को अभिव्यक्ति प्रादि । राजस्थानी की प्रकृति की मुख्य बातें हैं--- मुक्तक रचनामों के साथ-साथ प्रभूलश: प्रबन्धात्मक ऐतिहासिक और वीर रसात्मक रचनामों का निर्माण, शुद्ध लौकिक प्रेमकाव्य, अोज गुण प्रधान, कोमल शक्तियों के साथ-साथ परुष और कठोर
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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