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________________ मादि पुराण चक्र कहिए किनर देव, अश्वहू चपल पर किनरहू चपल ||८६1 कटकन भत्र समस्त फल पर पल्लव भर तर सो विध्याचल दल फल पुष्प बलि पत्र तिनिकरि रहित होयगमा मो मान, विध्याचल बंध्याचल होय गया । वंध्या नाम निफलका है ।। || बांसनिके चावल बांसनिके मोती निकरि मिथित तिनिकरि कट के लोग जिनद्रको अर्चा करते अपनी इच्छाकरि सुम्बसू तिष्ठते महामनोज्ञह विध्याचल की स्थली ।।६१तहां पृथ्वीपतिनं निवास किया तब वन के राजा राजाधिराजकू देखते भाए पर बनकी नानाप्रकारकी वस्तु प्रशंसायोग्य रोगको निवारणहारी महाऔषध भेट करते भग हरा। हाथीनिके दांत पर गजमोती पर बांसनिके मोती भीलनिके अधिपति भंट करते भए सो उचितही है पृथ्वीपतिका सत्कार करना ।।३।। नर्मदाकू उतरि विघ्याचलकू. उलघि चक्रवर्तीका नाटक पपिचदिनांक जीतिबे प्रयाण करता भया ।।१४।। पहली कछुद्धक उत्तरदिशाकी तरफ कटक जायकरि पश्चिम दिशाकू चक्रसहित प्राप्त भया, पाका प्रताप तो पहिलोही सब उर व्यापि रया है ।। ६५|| कटकके अश्व तिनिक खुर नितै उठी पृथ्वीको रज मो सूर्य के तेजकू रोकती भई केवल वैरीनिकाही तेज न रोक्या जाके तेज मार्ग सूसंहका तेज किंगया ।।६६।। लाट देश के राजा ललाटकरि स्पश्या है पृथ्वीतल जिनि प्रतिसुन्दर भाषा बोलते प्रभुकी आज्ञाके वशि होय लाभाटिक पदक प्राप्त भए । जो स्वामीका अभिप्राय जानं पर आज्ञाप्रमाण कार्य केरिबेकू समर्थ नाहि लालटिक कहिए ।।१७।। कैयक वनके अधिपति सोरठदेश के गज पर पंचनदीके वननिक गज भेंटकरि पृथ्वीनाथका दर्शन करते भए, वक्रकरि मब चलायमान होय गए ||६|| चक्रके देखिबेत डरे, देश तजि पृथ्वीनाधकं समीप आए तिनि जानी इह सब पृथ्वी चक्रेश्वरकी है जाहि जो स्थल देय सी पाई केयक राजा रमह समान महाऋ र हुते' सो चक्रीक वशि भए ।।१६।। भरत क्षेत्रका पति सब दिशानिके देशपनि पाते हाथी समान मदोन्मन तिनिक अपने बलते दबाय तूचे करता भया कम हैं गजा अर कैमे हैं गजराजराजा तो बड़े वंशके उपजे पर गज बड़े पीठिकू धरें, वंशनाम पीठहका है, पर हाथी मदोन्मत्त राजाहू मदोन्मत्त सो सब राजा गजेंद्रके प्रतापत निमंद होय गए ।।१०।। सोरठदेश के राजा अर उष्ट्रदेशके राजा ल्याए है अनेक प्रकार भेटानिक समूह तिनि पृथ्वीनाथ संतुष्ट करता तिनिपरि कृपा करता गिरिनार. गिरिको थली आमा ।। १०१।। सोरठदेशविष गिरिनारगिरि सुपेरुमारिया पर्वत तहां भरतक्षेत्रका पति प्राय पहोंच्या, प्रसवारीते उत्तरि गिरिनारिको प्रदक्षिणा
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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