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________________ २६२ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-हयक्तित्व एवं कृतित्व दीपन की माला प्रज्वलित भई ।। १६ 11 इद्रादिक सब देव और श्रेणिकादि सकल भूप श्री महावीर स्वामी का निर्वाण कल्याणक देय प्रभु से शान की प्राप्ति की प्रार्थना कर अपने २ स्थान नये ।। २० ।। उस दिन से इस भरतक्षेत्र बिषे दीप मालिका प्रसिद्ध भई प्रति वर्ष भव्य जीव निर्वाण की पूजा करें पर लोक दीपोत्सव करें ।। २१ ।। अर भगवान को मुक्ति गये पीछे बासठ वर्ष में केकली भव गौतम सुधर्म और जंबू स्वामी सो यह तीनों चतुर्थ कालके उपजे पंचम काल में पंचम गति जो निर्वाण तहां पधारे और इन पीछे सौ वर्ष में पांच श्रुत केवली भये ।। २२ ।। और उन पीछे वर्ष एकसौ तीरासी में ग्यारह अंग पर दस पूर्व के पाठी मुनि दस भये और तिन पीद्धे बरस दो सौ दीस में पांच मुनि ग्यारह अग के पाठी भये ओर लिन पीछे वर्ष एकसौ अठारह में चार मुनि एक प्राचारांग के पाठी भये तिनके नाम सुभद्र जयभद्र ! लोहगार यहाँ गरे । १६ : हर इन पीछे अंगन के पाटी तो न भये परन्तु महा विद्यावान ब्रतनके धारक भये तिनमें कई एकनके नाम कहे हैं-महा तपकी है वृद्धि जिनके ऐसे नयंधर ऋषि, श्रुति, ऋषि, गुप्ति, शिवगुप्त, अलि, मंदराचाचं, मित्रवीर, बल मित्र, सिघल, वीरवित ।। २५ ।। गद्ममसेन, गुणपद्य, गुणगागुणी, जितदण्ड, नन्दीपण, दीपसेन, तप ही है धन जिनके ऐसे श्री धरसेन, धर्मसेन, सिंहलेन, सुनन्दिसेन, सूरसेन, अभयसेन ॥ २७ ॥ सुसिधरोन, अभयसेन, भीमसेन, जिनसेन, शांतिसेन, समस्त सिद्धान्त के वेत्ता पट भाषान में गुणवान पटखा के प्रखष्ट नाथ ही हैं जिनके शब्द अर्थ अगोचर नाही ।। २८ ।। फिर जयसेन नामा सद्गुरु होते भये कर्म प्रकृति नामा श्रुति ताके पारगामी इन्द्रीन के जेता प्रसिद्ध वैयाकरणो महा पण्डित प्रभाववान समस्त शास्त्र समुद्र के परगामी ॥ २६ ।। तिनके शिष्य अमित तेज नामा सदगुरु पनिन पुन्नाटगण के अग्रणी जिन शासन की है वात्सल्यता जिनके महा तपस्वी मो वर्ष ऊपर है अवस्था जिनकी शास्त्रदान के बड़े दाता पण्डितों में मुख्य जिनके गुण पृथिवी में प्रसिद्ध तिनका बड़ा भाई, धर्म का सहोदर महा शांत संपूर्ण बुद्धि धर्ममूर्ति जिनकी तपोमई कीति जगत में विस्तार रही ऐसे कीतिरोन तिनका मुख्य शिष्य श्रीनेमिनाथ' का परम भक्त जिनसेन ताने अपनी शक्ति के अनुसार अल्प वुद्धि से प्राचीनग्रन्थ के अनुक्रम हरिवंश की पद्धति कही मो यामें प्रमाद के दोष से प्राब्द में तथा अर्थ में कहीं भूल होय तो पुराण के पाठी पण्डित सुघार लीजो एक केवली भगवान ही कयन में न चूके और समस्त चूकें ताका अचरज नाहीं । कहां यह प्रशंसा योग्य हरिवंश पुराण रूप पर्वत और कहा मेरी अल्म में अल्प बुद्धि की शक्ति ॥ ३४ ।। जो काहू ठौर श्राखडे तो कहा अचरज है। या पुराण विर्षे
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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