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महानि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
भिलाषी संमार में राचे हैं तो खोटी मृत्यु मरे हैं, सर्ग व्याघ्र गज जल अग्नि शस्त्र विद्यु पात शूलारोपण असाध्य रोग इत्यादि कुरीतित शरीर तजेंगे । यह प्राणी अनेक सहस्रों दुःख का भोगनहारा संसारविर्षे भ्रमण कर है। बड़ा आश्चर्य है वह यह सार में जाम रहा है। मैं कोई मदोन्मत्त क्षीरसमुद्र के तट सूता तरंगों के समूह से न डरे तैसे मैं मोहकर उत्पन्न भवभ्रमरण से नाहीं हरू हूँ, निर्भय होम रहा है। हाम हाय ! मैं हिंसा प्रारम्भादि अनेक जे पाप तिनकर लिप्त राज्य कर कौनसे घोर नरक में जाऊँगा ? फंसा है नरक, बाग खड्ग चक के प्राकार तीक्षण पत्र हैं जिनके ऐसे शाल्मलीवृक्ष जहां हैं अथवा अनेक प्रकार तिर्यञ्चगति ता विषै जाऊँगा । देखो जिनशास्त्र सारिखा महा ज्ञानरूप शास्त्र ताहूकों पाय करि मेरा मन पापमुक्त होय रह्या है । निस्पृह होकर यति का धर्म नाहीं धार है सोन आनिए कौन गति जाना है 1 ऐसी फर्मनिकी नाशनहारी जो धर्मरूप चिंता ताकू निरंतर प्राप्त हुवा जो राजा भरत सो जैनपुराणादि ग्रन्थनिके भवरण विष यासक्त है, सदैव साधुनकी कथाविषं अनुरागी रात्रि दिन धर्म में उद्यमी होता भया ।
इति श्रीरविषेणाचार्य विचरित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा घनिका विर्ष दशरथ का वैराग्य, राम का विदेश गमन पर भरत का
राज्य वर्णन करने वाला बत्तीसवां पर्व पूर्ण भया ॥३२॥