SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पग-पुराण-भाषा २६६ पर भाई जो एक माताके उदरसों उत्पन्न भया हुता, मो मो दुःखिनी कों न राख सम्या, सब ही कठोर चित्त होय गए । जहा माता पिता भ्राता ही की यह दशा, तहां काका बाबा के दूर भाई तथा प्रधान सामंत कहा करें अथवा उन सबका कहा दोष ? मेरा जो कमरूम वृक्ष फल्या सो अवश्य भोगना । या भांति अंजना विलाप कर सो सम्पी भी याके लार विलाप करें । मनते धैर्य जाता रहा, अत्यत दीन मन होय चे स्वरत रूदन कर सो मृगी भी याकी दशा देख आंसू डालवे लागी। बहुत देरतक रोनेते लाल होय गए हैं नेत्र जाके तब सस्वी वसंतमाला महाधिवक्षण याहि छातीसू लगाय कहती भई-हे स्वामिनि ! बहुत रोनेत क्या लाभ ? जो कर्म तैने उपाज्या है सो अवश्य भोगना है, सब ही जीवनिकै कम प्रागे पीछे लग रहे हैं सो कर्मके उदरविर्ष शोक कहा ? हे देवी ! जो स्वर्ग लोक के देव सैकड़ों ग्राम राघों के नेत्रनिकर निरंतर प्रत्रलोकिए है, तेडू मुलके अत होते परम दुःख पात्र हैं । मनमें चितए कछु प्रार, होय जाय पयार । जगतके लोक उद्यम में प्रवर्ते हैं तिनकों पूर्वोपार्जित कर्मका उदय ही कारण है । जो हितकारी वस्तु प्राय प्राप्त भई सो अशुभकर्म के उदयतें विटि जाय । पर जो वस्तु मनत अगोचर है सो प्राय मिल । कर्मनिकी गति विचित्र है तात हे देवी ! तु गर्भके खेदकरि पीड़ित है, वृथा क्लेश मत कर, तू अपना मन दृढ़ कर । जो तेने पूर्व जन्म में कर्म उपार्ज हैं तिनके फल दारे न टरें। अर तू तो महा बुद्धिमती है तोहि कहा सिखाऊ । जो तू न जानती होय तो मैं कहै, ऐसा कहकर याके नेत्रनिके प्रासू अपने वस्त्रत पोंछे । बहुरि कहती भईहे देवी ! यह स्थानक पाश्रय रहित है, तात उठो, प्रागै चालं, या पहाई के निकट कोई गुफा होय जहां दुष्ट जीवनिका प्रवेश न होय, तेरे प्रमूतिका समय आया है सो कई एक दिन यत्नम् रहना । तब यह गर्भके भारत जो प्राकाशके मार्ग चलनेमें हू असमर्थ है तो भूमिपर सीके संग गमन करती महा कष्टकार पांव धरसी भई । कैसी है बनी ? अनेक अजगरनितै भारी, दुष्ट जीवनिके नादकारि अत्यंत भयानक, प्रति सघन, नाना प्रकार के वृक्षनिकरि सूर्यको किरणका भी संचार नाही, जहां मुईके अग्रभाग समान डाभकी प्रती पति तीक्ष्ण, जहाँ ककर बहुत पर माते हाथीनिके समूह पर भीलों के समूह बहुत हैं पर बनी का नाम मातंगमालिनी है, जहां मनकी भी गम्यता नाहीं तो तनकी कहा गम्पता ? सखी आकाशमार्गतै जायवेको समथं पर यह गर्भ के भारकरि समर्थ नाहीं तात सखी याके प्रेम के बंबनसों बंधी शरीरको छाया समान लार लार साल है । अंजना बनी को अति भयानक देखकर कांप है. दिशा भूल गई।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy