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________________ २५८ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व भटोंसे महायुद्ध करते भए । बड़े-बड़े सामंत डमि सिकरि नाल नेत्र हैं जिनके वे महाभयानक शब्द करते भए । बड़ी देर तक संग्राम मया । सो चरुणा की सेना रावण की सेनासौं फैकुइक पीछे हटी । तब अपनी सेना को हटी देव वरुता राक्षसनिको पेनापर याप चल करि पाया, कालग्नि-समान भयानक | तब रावण दुनिवार वरुण को रणभूमि विर्ष सन्मुष पावता देखकर आप युद्ध करने को उद्यमी भया । बरुणके पर रावणकं प्रापन विष युद्ध होने लगा पर वरुणके पुत्र खरदूपरणसों युद्ध करते भाए । कैसे हैं वरुागके पुष ? महाभटोंके प्रलय करनहारे घर अनेक माते हाथियों के कु भस्थल विदारनहारे । सो रावण, क्रोधकरि दी है मन जाका, महाऋर जो भृकुटि तिनकरि भयानक है मुख जाका, कुटिल हैं केश जाके, जब लगि धनुष के बारण तान वरुणपर चलावै तब लग वरुण के पुत्रों ने रावण के बहनेऊ रदूषरण को पकड़ लिया । तब रावण मन में विचारी जो हम वासों युद्ध कर पर खरदूषण का मरण होय तो उचित नाहीं, तात सग्राम मनं क्रिया । जे बुद्धिमान हैं ते मयविर्षे चूक नाहीं । तब मत्रियोंने मंधकर सब देशोंक राजा बुलाए । शीघ्रगामी पुरुष भेजे । सबनिकों लिम्बा, बड़ी सेनासहित शीघ्र ही अामा । अर राजा प्रसाद पर भी पत्र लेग्स मनुष्य प्राया सो राजा प्रसाद ने स्वामीकी भक्तिकारि रावणके सेवकनिका बहुत सन्मान किया और उठकर बहत प्रादरसों पत्र माथे चढाया अर यांच्या । सो पविष या भाति लिखा था कि पातालपुर के समीप कल्याण रूप स्थानक में तिष्ठता महाक्षेमरूप विद्याधरों के अधिपतियोंका पति मुमालीका पुत्र जो रत्नश्रया, ताका पुत्र राक्षसवंशरूप प्राकागविर्षे चद्रमा ऐसा जो रावरण सो अादित्यनगर के राजा प्रसादकों प्राज्ञा कर है। कैसा है प्रसाद ? काल्याणरूप है, म्यायका देता है, देश-काल-विधान का शायक है. हमारा बहुत बल्लभ है । प्रथम तो तिहारे शरीरको कुशल पूछ है, बहुरि यह समाचार है कि हम को सर्व खेचर भूचर प्रणाम कर हैं, हाथोंकी अंगुली तिनके नखकी ज्योति कर ज्योतिरूप किए हैं निज शिरके केश जिनने, पर एक प्रति दुर्बुद्धि वरुण पाताल नगरमें निवास करै है सो पानातै परामुख होय लड़ने को उद्यमो भया है । हृदयकों व्यथाकारी विद्याधरों के समूहरि युक्त है। समुद्र के मध्य द्वीपको पायकर वह दुरात्मा गर्वको प्राप्त भया है, सो हम ताके ऊपर चढ़कर पाए हैं, बड़ा युद्ध भया । वरुण के पुत्रों ने खरदूषण को जीवसा पकझ्या है
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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