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________________ पद्य-पुराण-भाषा जाय अर चतुर जे सीजन तिनसों बोलने की इच्छा कर परंतु बोल न यकै पर हंसनी कबूतरी आदि गृह पक्षी तिनमों कोड़ा किया चाहै पर कर न सके । यह बिचारी सबों से न्यारी बैठी रहे, पति में लग रहा है मन पर नेव जाका, निःकारण पतित अपमान पाया सो एका दिन एक चरस बराबर जाय । यह याकी अवस्था देरिस सकल परिवार माकुल भया सब ही चितवते भए कि ऐता दुःख याहि बिना कारण क्यों भया है। यह कोई पूर्वोपार्जित पाप कर्म का उदय है । पिछले जन्म में याने काहू के सुख विष अंतराय किया है, सो याक भी सुख का अंतराय भया । वायुकुमार तो निमितमात्र है । यह बरी भोरी निर्दोष याहि परणकरि क्वों तजी, ऐसी दुलहन सहित देवनि समान भोग क्यों न करें । याने पिता के घर कभी रंचमाष हूं दुःख न देस्या सो यह कर्मानुभव कर दुःख के भारकों प्राप्त भई । याको सस्त्रीजन विचारे हैं कि क्या उपाय कर, हम नीति हमारे नाना-साय - 1 नाही, ई 4 मुर्म की चाल है, अब ऐसा दिन कब होयगा, वह शुभ मुहत शुभ वेला कव होयगी जो वह प्रीतम या प्रिया कों समीप लेय बैठेगा पर कृपा दृष्टि कर देखेगा, मिष्ट वचन बोलेगा, यह सब के अभिलाषा लग रही है। अथानंतर राजा चरण नाकं रावण मों विरोध पड़या, वरुपा महा गर्यवान रावण की सेवा न करे, सो गवण ने दूत भेज्या । दूत जाय वरुणमा कहता भया । दूत घनी की शक्ति कर महाक्रांति को घर है। ग्रहो विद्याधराधिपते वरुण ! सर्व का स्वामी जो गवण ताने यह प्राज्ञा करी है जो प्राप मोहि प्रणाम करो अथवा युद्ध की तैयारी करो। तब वरुण ने हँसकर कही, हो दून ! कौन है रावण, कहाँ रहे है जो मोहि दया है । सो मैं इंद्र नाही हैं जो वृथा गवित लोकनिद्य हुता, मैं वैश्रवणा नाही, यम नाहीं, मैं सहस्ररश्मि नाही, मैं ममत नाहीं रावण के देवाधिष्ठित रस्नोकरि महा गर्व उपज्या है, वाकी सामर्थ्य है तो प्रावो, मैं वाहि गवरहित करूगा पर तेरी मृत्यु नजीक है जो हमसों ऐसी दात कहै है। तब दूत जायकर रावण सों सर्व वृनांत कहता भया । रावण ने कोप कर समुद्र-तुल्य सेना सहित जाय वरुणा का नगर घेवा पर यह प्रतिज्ञा करी जी मैं पाहि देवाधिष्ठित रत्न विना ही वश करूमा, मारू अथवा बांधू । तब वरुण के पुत्र राजीव पुण्डरीकादिक क्रोधायमान होय रावरण के कटकपर आए । राजपकी सेना के अर इनके बड़ा युद्ध भया, परस्पर शस्वनि के समूह छेद डारे ! हाथी हाथियों से, घोड़े घोड़ों से, भट
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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