________________
महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
२५५
पपुराण निधान को, हाथ जोड़ि सिरनाय | ताकी भाषा बचनिका, भाषू मब मुखदाय ।। ३६ ।। पद्म नाम बलभद्रका, रामचन्द्र बलभद्र । भये पाठवें धार नर, धारक श्री जिनमुद्र ।।३७।। ता पीछे मुनिसुव्रतके, प्रगटे अति गुरणधाम । सुरनरवंदित धर्यमय, दशरथ के सुत राम ।। ३८।। शिवगामी नामी महा, ज्ञानी करुणावंत । न्यायवंत बलवंत अति, कर्म हरग जयवंत ।। ३ ।। जिनके लक्ष्मण बीर हरि, महाबली गुगणवंत । भ्रातभक्त अनुरक्त अति. जैनधर्म यशवंत ।।४।। चन्द्र सूर्य से वीर ये, हरें सदा परपीर | कथा तिनोंको शुभ महा, भाषी गौतम धीर ।।४।। सुनी सबै श्रेणिक नृपति, धर सरधा मन माहि । सो भाषी रविषेपाने, यामें मंशय नाहि ।।४२।। महासती सीता शुभा, गमचंद्र को नारि । भरत शत्रुघ्न अनुज हैं. यही बात उर धारि ॥४३।। तद्भव शिवगामी भरत, अरु लब-बकुश पूत । मुक्त भये मुनिवरत धरि, नमैं तिने पुरहत ।।४।। रामचन्द्रको करि प्रणामि, नमि विषेण ऋषीश । रामकथा भावू यथा, नमि जिन श्रुति मुनिईश ||४५।।
[प्रजमा और पवनंजय कुमार का मिलाप ] प्रथानंतर' पवनंजयकुमार ने अंजनागन्दरी को पररग कर ऐमी त जी जो कनई बात न बूझ, सो यह सुन्दरी पति के असंभाषणतं पर कृपादृष्टि कर न
१ पोग्स पर्ब ।