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________________ २२ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व विश्वास था और ये बीस पंथ आम्नाय वाले वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वालों में से प्रमुख थे। इन्होंने 'मिथ्यात्व खाडन' लिखकर महा पं० टोडरमल जी के विचारों का विरोध किया और भट्टारकों का खुलकर समर्थन किया । जयपुर में लश्कर का दि० जैन मन्दिर इनका साहित्यिक केन्द्र था और यहीं बैठकर इन्होंने साहित्य सर्जन किया था। बुद्धि विलास' इनकी महत्त्वपूर्ण कृति है; जिसका इतिहास से पूर्ण सम्बन्ध है। कवि ने इसमें तत्कालीन समाज, राज व्यवस्था, जयपुर नगर निर्माण आदि का अच्छा वर्णन किया है। यह उनकी सं० १८२७ मंगसिर सुधी १२ की रचना है । बस्तराम पाकसू के निवासी थे । बाकसू जयपुर से करीब २४ मोल दक्षिण पूर्व में बसा हुश्रा एक प्राचीन नगर है। जिसका जैन कवियों ने काफी अच्छा वर्णन किया है। इनके पिता पेमराज साह थे जो बाकसू में ही रहते थे । द.वि चाकसू से जयपुर स्थानान्तरित हो गये थे और यहीं पर विद्वानों के सम्पर्क में रहकर साहित्य सेवा किया करते थे। मिथ्यात्व लण्डन नाटक में कवि ने अपना वर्णन निम्न प्रकार किया है ग्रन्थ अनेक रहस्य ललि, जो कछु पायौ थाह । बख्तराम वरननु कियो, पेमराज सुत साह ।।१४८।। प्रादि चाटसू नगर के, वासी तिनि को जांनि । हाल सवाई जैनगर, मांहि बसे हैं प्रांनि ।। १४५।। तहाँ लसकरी देहुरे, राजत श्री प्रेभु नेम । तिनको दरसण करत ही. उपजत है अति प्रेम ।। १४१६।। कवि की एक लघु रचना "धर्मबुद्धि कथा' एवं कुछ पद भी मिलते हैं । बुद्धि विलास में अपने प्रबल विरोधी महा पं० टोडरमल की मृत्यु पर जो पंक्तियां लिखीं, वे अत्यधिक महत्वपूर्ण हैंयक तेरह पंथिनु में भ्रमी, टोडरमल्ल नाम साहिमी । कहे खलनि के नृपरिसि तांहि, हति के धरची असुचि थल नाहि । उक्त घटना के अतिरिक्त कवि ने अपनी रचनामों में तत्कालीन विद्वानों के सम्बन्ध में मौन ही रहना उचित समझा। १ राजस्थान पुरातत्व मन्दिर जोधपुर में प्रकाशित । सम्पादक श्री पअधर पाठक।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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